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________________ प्रस्तावना :: 17 सूक्ष्म-आज के कई वैज्ञानिक आविष्कार इन्हीं पुद्गल पर्यायों के रूप हैं, जिन्हें साफ्टवेयर कहते हैं। इसके अन्त्यसूक्ष्म और आपेक्षिक सूक्ष्म ये दो भेद हैं। स्थूल-जिन्हें हार्डवेयर कहते हैं वे स्थूल हैं। इसके अन्त्य स्थूल और आपेक्षिक स्थूल ये दो भेद हैं। संस्थान-अनेक प्रकार की आकृतियाँ संस्थान हैं। भेद-भेद यानि टुकड़े। इसके भी उत्कर आदि छह भेद हैं। तम-प्रकाश का प्रतिपक्षी तम कहलाता है। नेगेटिव। छाया-जो प्रकाश को रोककर उत्पन्न होती है। पाजेटिव। उद्योत-चमक या प्रकाश उद्योत है। आतप-उस चमक या प्रकाश के ओज को आतप कहते हैं। इस प्रकार पुद्गल की दश पर्यायें हैं। ये सैनी पंचेन्द्रिय प्राणी के अनुभवगम्य हैं और इनका प्रभाव प्राणी मात्र पर दिखता है। पुदगल का सबसे सूक्ष्म अंश परमाणु या अणु है। आकाश के जितने हिस्से-भाग या स्थान को अविभाज्य पुद्गल परमाणु घेरता है उसे प्रदेश कहते हैं। इस लक्षण के अनुसार जितना बड़ा अणु है उतना आकाश का एक प्रदेश है एवं जितना आकाश का एक प्रदेश है उतना बड़ा एक पुद्गल परमाणु है। इस प्रकार एक प्रदेश या परमाणु का लक्षण बनाने पर प्रश्न उठता है कि आकाश का एक प्रदेश का आकार कैसा है; जिससे परमाणु का आकार निकाला जा सके? इसके समाधान के लिए हम सबसे पहले आकाश की संरचना का विश्लेषण करते हैं। जब जीव और पुद्गल लोकाकाश में गति करते हैं तब गति श्रेणी के अनुसार होती है। आकाश प्रदेशों की पंक्ति को श्रेणी कहते हैं। जिस प्रकार वस्त्र में ताना (खड़ा धागा) बाना (आड़ा धागा) होता है, उसी प्रकार आकाश प्रदेशों की पंक्ति भी ताना-बाना रूप होती हैं, जिससे उनके बीच समघनचतुरस्र (सम चौकोर) स्थान बनेगा, उसे आकाश का एक प्रदेश कहा जाता है। ऐसे समघनचतुरस्र आकाश प्रदेश में जो अविभाज्य पुद्गल का, अंश समा जाता है वह अणु है। इससे सिद्ध होता है कि परमाण का आकार समघनचतुरस्र है। कोई भी चौकोर वस्तु षट् पहल (चारों तरफ के चार एवं ऊपर नीचे के दो) एवं आठ कोने (हर एक मोड़ के ऊपर नीचे के दो कोने, ऐसे चारों मोड़ों के आठ) वाली होती है। जैसे-पुस्तक के आकार में चारों तरफ के चार पहल एवं ऊपरनीचे के दो पहल ऐसे कुल छह पहल हैं; एक मोड़ में दो कोने से चार मोड़ों में आठ कोने होते हैं। महापुराण के कर्ता जिनसेनाचार्य परमाणु को गोल मानते हैं। अब सूक्ष्म रीति से यह विचार करना है कि परमाणु चौकोर के अलावा गोल कैसे हो सकता है? ____ इस प्रसंग में हमें पुनः परमाणुओं के भेद-प्रभेदों को समझना होगा। परमाणु दो प्रकार का होता हैकारणरूप और कार्यरूप ।” अणुओं के चार भेद भी हैं कार्य, कारण, जघन्य एवं उत्कृष्ट। स्कन्धों के अवसान को कार्य परमाणु जानना। जो चार धातुओं (पृथ्वी, जल, तेज, वायु) का हेतु है वह कारण परमाणु जानना। स्कन्ध के विघटन से उत्पन्न होनेवाला कार्य परमाणु और जिन परमाणुओं के मिलने से कोई स्कन्ध बनता है 32. द्र.सं., गा. 27 33. तत्त्वा . सू., अ. 2, सू. 26 34. सर्वा. सि., वृ. 312 35. आ.सा., अ. इ, श्लो. 13, 24 36. महा. पु., सर्ग 24, श्लो. 148 37. न.च., वृ. 101 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003694
Book TitleTattvartha Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitsagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2010
Total Pages410
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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