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16 :: तत्त्वार्थसार
शब्द में स्पर्श के आठ गुण1. हल्का-धीरे से शब्द बोलना
हल्के शब्द सुनना 2. भारी-जोर से शब्द बोलना
जोर से शब्द सुनना ठण्डा-क्षमा से शब्द बोलना
क्षमा से शब्द सुनना गरम-क्रोध से शब्द बोलना
क्रोध से शब्द सुनना 5. रूखा-द्वेष से शब्द बोलना
द्वेष से शब्द सुनना चिकना-राग से शब्द बोलना
राग से शब्द सुनना कड़ा-अनुशासन से शब्द बोलना अनुशासन से शब्द सुनना 8. नरम-प्रमाद से शब्द बोलना
प्रमाद से शब्द सुनना शब्दों में पाँच रस-वैसे तो रस रसना इन्द्रिय के द्वारा वेदन होता है, फिर भी शब्द बोलने का माध्यम तो जिह्वा इन्द्रिय है।
1. खट्टा-कुछ शब्दों को सुनकर मन खट्टा हो जाता है। 2. मीठा-कुछ शब्दों को सुनकर मन मीठा हो जाता है। 3. चरपरा-कुछ शब्दों को सुनकर मन में ईर्ष्या-जलन होती है। 4. कडुवा-कुछ शब्दों को सुनकर मन में कडुवापन आ जाता है। 5. कषायला-कुछ शब्दों को सुनकर मन में कषाय उत्पन्न हो जाती है।
शब्दों में दो प्रकार की गन्ध-वैसे गन्ध नासिका इन्द्रिय के द्वारा जानी जाती है फिर भी जिन शब्दों को सुनकर मनुष्य नाक-मुँह सिकोड़ने लगता है, नाक चढ़ा लेता है, अतः शब्दों का प्रभाव नासिका इन्द्रिय पर भी होता है।
1. सुगन्ध-जिन शब्दों को सुनकर सभ्यता की गन्ध आती है, मन खुश होता है।
2. दुर्गन्ध-जिन शब्दों को सुनकर असभ्यता की दुर्गन्ध आती है, नाक-मुँह सिकोड़ने लगते हैं वही शब्द की दुर्गन्ध है।
शब्दों में पाँच प्रकार के वर्ण-यद्यपि वर्ण चक्षु इन्द्रिय के द्वारा जाना जाता है फिर भी जिन शब्दों के द्वारा व्यक्ति का उद्देश या क्रिया अभिव्यक्त होती है उससे उनके रंगों का पता चल जाता है। 1. काला-कृष्ण लेश्यायुक्त शब्द काले हैं। जिन शब्दों को सुनकर व्यक्ति पता लगा लेता है कि कुछ
दाल में 'काला' है अर्थात् उसका मन काला है। 2. नीला-(हरा+ पीला) नील लेश्यायुक्त शब्द नीले हैं। जिस शब्द को सुनकर आँखें हरी-पीली हो
जाती हैं। 3. हरा-कपटपूर्ण शब्द हरे हैं। जिन हरे-भरे शब्दों को सुनाकर व्यक्ति दूसरों को ठगता है। 4. पीला-दया, दान युक्त शब्द पीत लेश्या है। 5. सफेद-न्यायपूर्ण, वीतराग शब्द शुक्ल लेश्या है। दूध-का-दूध, पानी-का-पानी, बे-दाग छवि आदि
शब्दों की धवलता का कथन करना। इस प्रकार शब्द में पुद्गल के गुण पाये जाते हैं, अतः शब्द पुद्गल की पर्याय है, न कि आकाश का गुण। बन्ध-बन्धादि की दशाएँ भी अनेक प्रकार से अनभव में आती हैं।
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