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________________ 80 :: तत्त्वार्थसार ज्योतिष्क, भवनवासी और व्यन्तर देवों की ऊँचाई ज्योतिष्काणां स्मृताः सप्तासुराणां पञ्चविंशतिः। शेषभावन-भौमानां कोदंडानि दशोन्नतिः॥ 139॥ अर्थ-ज्योतिष्क देवों की ऊँचाई सात धनुष होती है। भवनवासियों में से असुरों की ऊँचाई पच्चीस धनुष होती है। शेष सर्व भवनवासियों की तथा व्यन्तरों की ऊँचाई दश धनुष होती है। वैमानिक देवों की ऊँचाई द्वयोः सप्त द्वयोः षट् च हस्ताः पञ्च चतुव॑तः । ततश्चतुर्षु चत्वारः सार्द्धाश्चातो द्वयोस्त्रयः॥ 140॥ द्वयोस्त्रयश्च कल्पेषु समुत्सेधः सुधांशिनाम्। अधौग्रैवेयकेषु स्यात् सार्द्ध हस्तद्वयं यथा॥ 141॥ हस्तद्वितयमुत्सेधो मध्यग्रैवेयकेषु तु।। अन्त्यग्रैवेयकेषु स्यात् हस्तोऽप्यर्द्ध समुन्नतिः। एकहस्तः समुत्सेधो विजयादिषु पञ्चसु॥ 142॥ (षट्पदी) अर्थ-प्रथम-द्वितीय स्वर्गों में शरीर की ऊँचाई सात हाथ है। तृतीय-चतुर्थ में छह हाथ है। चौथे से ऊपर आठवें पर्यन्त पाँच हाथ है। नौवें से बारहवें पर्यन्त चार हाथ है। तेरहवें-चौदहवें में साढ़े तीन हाथ है। पन्द्रहवें-सोलहवें में तीन हाथ है। इसके ऊपर पहले तीन ग्रैवेयक विमानों में अढ़ाई हाथ है। बीच के तीन विमानों में दो हाथ है। अन्तिम तीन ग्रैवेयकों में डेढ़ हाथ है। (इसके ऊपर एक पटल में जो नौ अनुदिश विमान' हैं उनमें भी डेढ़ हाथ प्रमाण है)। विजयादि पाँच अनुत्तर विमानों में एक हाथ प्रमाण है। तिर्यंच गति के शरीरों का परिमाण___ योजनानां सहस्रं तु सातिरेकं प्रकर्षतः। एकेन्द्रियस्य देहः स्याद्विज्ञेयः स च पद्मनि॥ 143॥ अर्थ-एकेन्द्रिय जीवों में सबसे बड़ा शरीर कमल का हो सकता है। उसका प्रमाण कुछ अधिक एक हजार योजन का होता है। त्रिकोशः कथितः कुम्भी शखो द्वादशयोजनः । सहस्रयोजनो मत्स्यो मधुपश्चैकयोजनः ॥ 144॥ अर्थ-द्वीन्द्रियों में कुम्भी का शरीर तीन कोश का होता है। त्रीद्रिन्यों में बारह योजन का शंख का शरीर होता है। पंचेन्द्रियों में हजार योजन का मच्छ का शरीर होता है। चौइन्द्रियों में भौंरा का शरीर सबसे 1. अनुदिशविमानेषु चाध्यर्धऽरत्नि: (रा.वा. 4/21, वा. 8) 2. यहाँ पर हाथ के प्रमाण से ऊँचाई लिखी है, परन्तु राजवार्तिकादि ग्रन्थों में अरलि का प्रमाण है। कोहनी से मध्यम अंगुल पर्यन्त को हाथ कहते हैं और कोहनी से कनिष्ठ अंगुली पर्यन्त को अरनि कहते हैं। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003694
Book TitleTattvartha Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitsagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2010
Total Pages410
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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