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उ. अ.
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१ 'जहा करेणु परिकिणे कुंज्जरे सठ्ठि हायणे । बलवंते अप्पाडहए एवं हवइ बहुस्सुए ||१८|| जहा से तिख्ख सिगें जाखं वियई । वस जूहाहिवई एवं हवइ बहुस्सु ॥ १९ ॥ जहासेतिख्ख दाढे उदग्गे दुप्पहंसए। सिहे मियाण "वरे एवं हवइ बहुस्सु ॥२०॥ जहा से वासुदेवे संख चक्क गयाधरे । अप्पडिहय बले जोहे एवं हवइ बहुस्सुए ॥२१॥ जहासे चाउ रंते चक्कवट्टी महिदिए । चउदस रयणा हिवई एवं हवइ बहुस्सुए ||२२|| जहा से सहसंखे वज्जपाणी पुरंदरे । सक्के देवा हिवई एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २३ ॥ जहा से तिमिरबिसे उत्तिते दिवायरे । जलते इव एणं एवं हवइ बहुस्सु ॥ २४ ॥
१. कोइ प्रतोमां 'जहासे 'छे.
हाथणीओना परीवारमां म्हालता साठ वर्षन । बळवान हाथीने जेम [तेना) बीजा (शत्रु) हाथीओ पराजित करी शकता नथी, तेम सानो पण कोइ पराभव करी शकर्तुं नथी. [१८). जम तीक्ष्ण शींगडावाळो अने स्थूल स्कन्ध (गरदन) वाळो वृषभ गायना युथमां शोभे छे, तेम बहु श्रुत साधु पण शोभे छे. [१९]. जेम तीक्ष्ण दाढवाळो बलवंत दुर्जय सिंह सर्व पशुओम श्रेष्ठ गाय छे, ते बहुश्रुत साधु पण सर्व मनुष्योमां श्रेष्ठ गणाय छे. [२०], जेम शंख, चक्र, गदा, धारण करनार वासुदेव अप्रतिहत बळी (बाह्य) शत्रुने जीते, तेम (ज्ञान, दर्शन, चारित्र रूपी त्रण रत्नो धारण करनार) बहु श्रुत साधु पण पोताना ( अन्तरना ) शत्रुने जीते छे. [२१]. चतुरंगिणी सेना अने महाद्विनो धणी, अने चौद रत्न (अने नव निधान)नो अधिपति चक्रवत्तिं राजा जेवां सुख भोगवे छे, तेवां सुख बहु श्रुत साधु पण (दान, शील, तपादिए करीने) भोगवे छे. [२२]. जेम सहस्र नेत्रनो धणी, वज्रनो धारण करनार, दैत्य नगरने दमनार, शक्र (इन्द्र) सर्व देवनो अधिपति गणाय छे, तेम बहु श्रुत साधु पण सर्व साधुमां श्रेष्ठ गणाय छे. [२३] जेम सूर्य अन्धकारनो नाश करे छे, अने तेजथी देदीप्यमान जणाय छे तेम बहुश्रुत साधु मिथ्यात्वरूपी अन्धकारनो नाश करे छे, अने पोताना तपे करीने प्रकाशे छे. [२४].
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