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________________ 00000 * अध्ययन ९. नमि प्रव्रज्या. (नमि राजानी दिक्षा). 000000000 - - - - उ.अ. | चइऊण देवलोगाओ उववन्नो माणुस्संमि लोगंमि । उवसंत मोहणिज्जो सरइ पोराणि यजाई ॥१॥ जाई सरित्त Ta] भयवं सहसंबुद्धो अणुत्तरे धम्मे । पुत्तंठवितुरज्जे अभिनिख्खमई नमीराया ॥२॥ सोदेवलोग सरिस्से अंतेउरवर गउ३ बरे भोए । भुंजित्तु नमीराया बुद्धोभोगे परिचयइ ॥३॥ * अध्ययन ९. ॐ सातमा देव लोकी चवीने मनुष्य लोकने विषे जन्म लीधा पछी निमि राजा मोहनी कर्मथी मुक्त थ्या अने तेमने पोताना पूर्व भवर्नु जाति स्मरण ज्ञान भयु. (१). जाति स्मरण ज्ञान उपजवाथी नमि राजा सर्वोत्कृष्ट जिन धर्मने विषे स्वयंसम्बुद्ध थया. ३ [पोतानी मेळे धर्मनो प्रतिबोध पाम्या ], तेथी पोताना पुत्रने राज्य सोपीने पोते दिक्षा ग्रहण करी. [२]. येताना अंतःपुरनी देवांगना सरखी स्त्रीओ संगाथे देव लोक सरखा भोग भोगव्या पछी, पोताने ज्ञान उपजवाथी नमि राजाए भोग छोडी दीधा. (३). १. नमि राजानुं जीवन वृत्तांत टीकामां आपेलुं छे. श्रीमती मयणरेहानुं भक्तिथी उभरातुं चरित्र पण टीकामां आपलं छे. २. आठ कर्म माहेना, चार धन घातीा कर्ममां, मोहनी कर्म विशेष प्रबळ छे. मोहनी कर्म संसारमा रखडावे छे. ठेठ अगीआरमा 'उपशान्तमोह' गुण स्थानके तेनो क्षय थाय छे. ३.पोतानां पूर्व भवर्नु स्मरण आ ज्ञानथी थाय छ, मती ज्ञाननो ते भेद छे. अवग्रह, इहा, अपाय अमे धारणा ए अनुक्रमे वृद्धि थतां केटलाक सरल सुर्लभ बोधि जीवने जाति स्मरण ज्ञान उत्पन्न थायछ. ४.समकालिक चार प्रत्येक बुद्ध मांहेना तेओ एक हता. जाति स्मरणादिक ज्ञानथी पोतानी मेळे बुझनार स्वयंबुद्ध कहेवाय छे. काइ देखीने वैराग्य पागनार प्रत्येक बुद्ध कहेवाय छे. गौत्तम बुद्ध गळतो वळद अने मडदेखीने बुझ्या तेम. ००००००००००००००००००००००००००० Join Education Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003693
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Mohanlal Damodar
PublisherMehta Mohanlal Damodar
Publication Year
Total Pages352
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size20 MB
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