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चरे पयाई परिसंकमाणो जकिचि पास इहमनमाणो । लाभंतरे जीविय व्हइत्ता पछा परिन्नाय मलावधंसी ॥७॥ छंदं निरोहेण उवेइ मोख्खं आसेजहा सिख्खियवम्म धारी। पुव्वाइं वासाइं चरेप्पमत्तो तम्हा मुणिखिप्प मुवेइ मोख्ख ॥८॥ स पुव्वमेवं नलभेझपछा एसोवमा सासयवा इयाणं । विसीयइ सिढिले आउ यमि कालोवणीए सरीरस्स भेए ॥९॥ खिप्पं नसके इ विवेगमेउ तम्हा समुठ्ठाय पहाय कामे । समिक्षा लोगं समया महेसी अप्पाण रख्खीवचरप्पमत्तो॥१०॥ - साधु पापी संकोचाइने संयम मार्गे संभाळथी विचो छे अने संसारनां कामकाज अने ग्रहस्थीना परिचयने पाशरुप माने छे. ज्यां सुवी ज्ञान, दर्शन, चारित्रादिनो लाभ प्राप्त थाय त्यांसुधी संभाळ पूर्वक जिवित धारण कर. पछीथी प्रज्ञा बुद्धिए करीने सर्व
वस्तुनो त्याग करी, अगसण लइ, पापरुप मळने फेडवो. (७). स्वच्छंदतानो निरोध करवायी साधु मोक्षे जाय छे. जेम सुशिक्षित A कवचधारी अश्व [अश्वारनी सूचना मुजर चाले तो ] युद्धमा शत्रुने जीती आवे छे (तेम साधु पण इच्छाने रुंधे तो मोक्ष पामे
छे ). जे साधु पूर्व काळमां [जुवानीमा ] अमत्त रहीने विचरे ते साधु जलदीथी मोक्षे जाय छे. (८). 'पूर्व काळमां अप्रमत्तत्व प्राप्त न थ' तो ते पश्चात काळमां थशे. अर्थात-हमगां तो खाउं, पाउ, पछी मरण काळे धर्म करीश ] एवो वाद शाश्वतवादी आयुष्यना धणीने शोभे पण जेम जेम आयुष्य शिथिल थर्नु जाय छ, अने मरणका निकट आवतो जाय छे, तेम तेम तेवा मनुष्योने दुःख उपजेछ. [ के में धर्म न कर्यो, हवे मारी शी गति थशे ? ] (९). प्राणी मरण समये एकदम त्यागरुप विवेक पाळी शके नहि; तेटला माटे काप भोग छांडीने धर्मने विषे उद्यम करवो, आ लोकर्नु स्वरुप ओळख, ज्ञानी पुरुषनी माफक (शत्रु, मित्र तरफ) सम्भाव राखवो, आत्मार्नु रक्षण करवु अने कदि प्रमाद करवो नहि. [१०].
१. आयुष्यनो अंत नथी एवा अभिप्रायवळाओनोज आ भ्रम मात्र छे. प्रो. जेकोबी पण तेना शब्दार्थमां आ शब्दो वापरेछे " This is the comparison of those who contend that life is eternal."
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