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________________ E.अ. all सत्तरस सागराइं उक्कोसेण ठिई भवे । महासुक्के जहन्नेणं चउदस सागरोवमा ॥२२९॥ अठारस सागराइं उक्को| सेण ठिई भवे । सहरतारे जहन्नेणं सत्तरस सागरोवमा ॥२३०॥ सागरा अउणवीसंतु उक्कोसेण ठिई भवे । आणयम्मि जहन्नेणं अठारस सागरोवमा ॥२३१॥ वीसंतु सागराइं उक्कोसेण ठिई भवे । पाणयम्मि जहन्नेणं सागरा अउणवीसई ॥ २३२ ॥ सागराएकवीसंतु उक्कोसेण ठिई भवे । आरणम्मि जहन्नेणं वीसई सागरोवमा ॥ २३३ ॥ बावीस सागराई उक्कोसेण ठिई भवे । अच्चुयंमि जहन्नणं सागरा एकवीसई ॥२३५॥ तेवीस सागराई उक्कोसेण ठिई भवे । पढमम्मि जहन्नेणं बावीसं सागरोवमा ॥ २३५ ॥ चउवीस सागराइं उक्कोसेण ठिई भवे । बिइयंम्मि Ma जहन्नेणं तेवीसं सागरोवमा ॥२३६॥ महाशुक्र देव लोकना देवतानी उत्कृष्ट स्थिति सत्तर सागरोपमनी अने जघन्य स्थिति चौर सागरोपमनीछे. [२२९]. सहस्रार देव लोकना देवतानी उत्कृष्ट स्थिति अठार सागरोपमनी अने जघन्य स्थिति सत्तर सागरोपमनी छे. [२३०] आणत देव लोकना देवतानी उत्कृष्ट स्थिति १९ सागरोपमनी अने जघन्य स्थिति १८ सागरोपमनी छे. [२३१] प्राणत देव लोकना देवतानी उत्कृष्ट स्थिति २० सागरोपमनी अने जघन्य स्थिति १९ सागरोपमनी छे. [२३२] आरण देव लोकना देवतारी उत्कृष्ट स्थिति २१ सागरोपमनी अने जघन्य स्थिति २० सागरोपमनी छे. (२३३) अच्युत देव लोकना देवतानी उत्कृष्ट स्थिति २२ सागरोपमनी अने जघन्य स्थिति २१ सागरोपमनी छे. (२३४) प्रथम ग्रेवेयकने विषे देवतानी उत्कृष्ट स्थिति २३ सागरोपमनी अने जघन्य स्थिति २२ सागरोपमनी छे. (२३५) बीजा अवेयकने विषे देवतानी उत्कृष्ट स्थिति २४ सागरोपमनी अने जघन्य स्थिति २३ सागरोपमनी छे. (२३६) Jamn Educationa interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003693
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Mohanlal Damodar
PublisherMehta Mohanlal Damodar
Publication Year
Total Pages352
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size20 MB
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