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________________ असंख काल मुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नियं । कायठिई पुढवीणं तंकायंतु अमुंचओ ॥ ८२ ॥ अणंतकाल मुक्कोस । अंतोमुहत्तं जहन्न्यं । विजमि सए काए पुढवि जीवाण मंतरं ॥८३॥ एएसिं वन्नओ चेव गंधओ रस फासओ। स्ठाणा देसओवावि विहाणाई सहस्ससो ॥ ८४ ॥ दुविहा आउ जीवाओ सुहुमा ायरा तहा । पज्जत्त मपज्जत्ता ।। एवमेए दुहापुणो ॥८५॥ बायरा जेउपज्जत्ता पंचहा ते पकित्तिया सुद्धोदएय उस्सेय हरतणु महिया हिमे ॥ ८६ ॥al एगविह मनाणत्ता सुहुमा तथ्थ वियाहिया । सुहुमा सबलोगंमि लोगदेसेय बायरा ॥८७॥ संतई पप्पणाईया अपज्जवसियाविय । ठिईपडुच्च साईया सपज्जवसियाविय ॥८८॥ सत्तेव सहस्साई वासाणु कोसिया भवे । आउ ठिई आऊणं अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥८९।। ___ पृथ्वी जीव पृथ्वी क.यथी न मूकायतो तेनी उत्कृष्ट स्थिति असंख्याता काळनी अने जघन्य स्थिति अंतर मुहूर्त्तनी छे. [८२]. पृथ्वी जीव पृथ्वी कायथी चवीने उत्पन्न थाय तेनो उत्कृष्ट आंतरो अनंता काळनो अने जघन्य आंतरो अंत मुहर्त्तनो छ. [८३]. पृथ्वी जीवोनां वर्ण, गंध, रस, स्पर्श अने संस्थानने लइन हजारो भेद पडी शके. [८४]. (२) अप्पकाय जीवना वे प्रकार छ:१ सूक्ष्म अने २ बादर. तेना वळी पर्याप्त अने अपर्याप्त एवा वे भेद छे.[८५]. बादर पर्याप्त अप्पकायना पांच प्रकार छ:-१ शुद्ध जळ, २ मेघ, समुद्रादिनु जळ, ३ झाकळ, ४ परसवो, ५ हिम (बरफ).[८६]. सूक्ष्म अप्पकायनो एक प्रकार छे. तेना विविध भेद नथी. सूक्ष्म अप्पकाय आखा लोकने विष व्यापीछे, परंतु बादर अप्पकाय लोकना एक देशने विषे व्याप्त छे. [८७]. प्रवाह रुपे जोइए तो अप्पकाय जीव आदि अने अंत रहित छे. परंतु तेओ हाल जे रुपे छेते रुपे जाइए तो ते आदि अने अंत सहित छे. [८८]. अप्पकाय जीवनी उत्कृष्ट स्थिति सात हजार वर्षनी अने जघन्य स्थिति अंत मुहर्तनी छे (८९). Jain Education Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003693
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Mohanlal Damodar
PublisherMehta Mohanlal Damodar
Publication Year
Total Pages352
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size20 MB
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