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________________ उ. अ. ३६ ३१७ पुढवीय सक्कराय वालुयाय उबले सिलाय लोणोसे । अय तंत्र तउय सीसग रुप्प सुवन्नेय वइरेय ॥ ७४ ॥ हरियाले हिंगलुए मणोसिला सीसगं जण प्पवाले । अम्भपडलम्भ वालुय बायरकाए मणिविहाणा ॥ ७५ ॥ गोमि - जय रुगे अंके फलिहेय लोहियख्खेय । मरगय मसारगल्ले भुयमोयग इंदनीलेय ॥ ७६ ॥ चंदणं गेरुय हंसगभे पुलएय सोगंधिएय बोधव्वे | चंदप्पह वेरुलिए जलकंते सूरकंते ॥ ७७ ॥ एए खर पुढवीए भैया छत्तीस माहिया । एगविह मनाणत्ता सुहुमा तथ्य वियाहिया ॥ ७८ ॥ सुहुमा सव्वलोगंमि लोग देतेय बायरा । इत्तो काल विभागंतु तेसिं बोद्धुं चउब्विहं ॥७९॥ संतई पप्पणाईया अपज्जवसियात्रिय । ठिईपडुच्च साईया सपज्जवसियाविय ॥ ८० ॥ बावीस सहरसाई वासाक्कोसिया भवे । आउ ठिई पुढवीणं अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥८१॥ माटी मरडिया कांकरा, रेती, पाषाण, शीला, लवण, खारीमाटी, लोढुं त्रांबु, कलइ, सीसुं, रुपुं, सोनुं, हीरा, हरियाल, हिंगलो, मणसिल, सीसक, (जस्त), सुरमो, परवाळा, अभ्रपटल, अभ्रवालुका, गोमेधमाण, रुचक रत्न, अंक रत्न, स्फाटिक रत्न, लोहिताक्ष मणि, मरतक मणि, मसारगल्ल रत्न, भूजमोचक रत्न, इन्द्रनील रत्न, चंदन, गेरु, हंसगर्भ, पुलक, सौगंधिक रत्न, चंद्रप्रभ रत्न, बैडूर्य मणि, जलकान्त मणि अने सूर्यकान्त मणि. [ ७४-७७ ]. ए प्रमाणे कठोर ( खर) पृथ्वी जीवना छत्रीस भेद वर्णव्या छे. सूक्ष्म पृथ्वी जीनो एक भेद छे; तेना जुदा जुदा भेद नथी. (७८). सूक्ष्म पृथ्वी जीव लोकने विषे सर्वत्र फेलाइ रह्या छे, परंतु बादर पृथ्वी जीव लोकना एक देशने विषे रहेला छे. हवे हुं तेना चार प्रकारना काळ विभाग कहुं हुं . [ ७९ ]. प्रवाह रूपे जोइए तो पृथ्वी जीव आदि अने अन्त रहित छे. परंतु ते हाल जे रुपे छे ते रुपे जोइए तो ते आदि अने अन्त सहित छे. (८०). पृथ्वी जीवनी उत्कृष्ट स्थिति बावीस हजार वर्षनी अने जघन्य स्थिति अंत मुहूर्त्तनी छे. [८१]. नोट-छत्रीसने बदले चाळीस थाय छे. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003693
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Mohanlal Damodar
PublisherMehta Mohanlal Damodar
Publication Year
Total Pages352
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size20 MB
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