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________________ 18 दसय नपुंसएसं वीसं इथियासुय । पुरिसेसुय अठ्ठसय समएणेगेण सिझई ॥५२॥ चत्तारिय गिहिलिंगे अन्नलिंगे al HTE दसेवय । सलिंगेणय अठ्ठसयं समएणेगेण सिझई ॥५३॥ उक्कोसो गाहणाएओ सिझंते जगवंदुवे । चत्तारिय जह ! न्नाए जवभझछु त्तरं सयं ॥५४॥ चउरुट्ठलोएय दुवे समुद्दे तओ जले वीस महे तहेवय । सयंच अहुत्तर तिरियMo लोए समएणोण तिझई धुवं ॥५५॥ कहिंपडिहयासिद्धा कहिंसिद्धा पइठिया । कहिंवोदि चइत्ताणं कथ्थ गंतूण सिझई ॥ ५६ ॥ अलोए पडिहया सिहा लोयग्गेय पइया । इहं वोदिंच इत्ताणं तथ्थ गंतूण सिझई ॥ ५७ ॥ वारसहिं जोयणेहिं सवठस्सु वरिं भवे । इसीपम्भार नामाओ पुढवाछुत्त संठिया ॥ ५८ ॥ पणयाण सयसहस्सा . नपुंसक लिंगमांथी दश, स्त्री लिंगमांथी वीश, पुरुष लिंगमांधी एक सोने आठ, गृहलिंग (गृहस्थ-वर्ग) मांथी चार, अन्य लिंग [ अन्य दर्शनी ] माथी दश अने स्वलिंग [जैन दर्शनी ] माथी एक सोने आठ एकी साथे सिद्ध थइ शके. [५२-५३]. उत्कृष्ट' कदना बे जघन्य कदना चार, अने मध्यम कदना एक सो आठ जीव एकी साथे सिद्ध दशाने प्राप्त करी शके. [५४]. Mal.उर्ध्व लोकने विषे चार, समुद्र विषे बे, अन्य जळने विषे त्रण, अयो लोकने विष वीश, अने अही द्वीपने विषे एक सो आठ जीव एकी साथे सिद्ध थइ शके. [५५]. सिद्ध जीवोने क्या जवानो प्रतिबंध छे? तेओ क्यां रहे छे ? तेओ पोतानां शरीर क्यों छोडी जाय छे ? अने सिद्ध थइने क्यां जाय छे. [५६]. सिद्ध जीवाने अलोकने विषे जवानो प्रतिबंध छे. तेओ लोकामना मस्तकने विषे रहे छे. तेओ पोतानां शरीर आ लोकने विषे होडी जाय छे अने त्यां लोकाग्रे जइने सिद्ध थाय छे. [१७]. सर्वार्थ सिद्ध विमाननी उपर बार जोजन उंचे इष्ट-पागभारा ( इसिपभारा) नामे पृथ्वी [सिद्ध-शिला] छत्रीने आकारे आवी रहेली छे. ते ४५ लाख जोजन लांबी अने तेटलीज पहोळी छ; अने तेथी त्रणथी वधारे गणो तेनो परिघ [घेगवो] छे. [१,४२,३०,२५९ जोजन]. ते १५चशो धनुष्यनु कद उत्कृष्ट कहेवाय २ बे हाथर्नु कद जघन्य कहेवाय. Jain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003693
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Mohanlal Damodar
PublisherMehta Mohanlal Damodar
Publication Year
Total Pages352
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size20 MB
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