SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 310
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उ.भ. ३५ २०४ - इंदियाणिउ भिख्खूस्सतारिसंमि उवस्सए । ढुकुराइ निवारेउ काम राग वित्रणे ॥ ५ ॥ सुसाणे सुन्न गोरेवा रुख्खमूलेव एगगों । पइरिके पर कडेवा वासं तथ्या भिरोय ॥ ६ ॥ फा सुर्यमि अणावाहे इथ्वीहि अभिदुए | तथ्य संकप वा भिख्खू परम संजए ॥ ७ ॥ न सयं गिहाई कुब्वे तानेव अन्नेहिं कारए । हि कम्म समारंभे भूयाणंदिस्सए वहो ॥८॥ तसाणं थावराणंच सुहुमाणं वायराणय । तम्हागिह समारंभ संजओ परिवज्जए ॥९॥ तव भत पाणेसु पयणे पयावणेसुय । पागभूय दयडाए नपए नपया ए॥ १० ॥ जल धन्न निस्सिया जीवा पुढवी कठ्ठे निस्सिया । हम्मेति भत्तपाणेमु तम्हा जिखु नपयाव ||११|| कारण के काम-रागने वधारनार एवा मनोहर उपाश्रयमाँ पोतानी इन्द्रियने वश राखवानुं काम साधुने मुश्केल थइ पडे छे. (५). स्मशानमां, सूना घरम, वृक्षना थड तळे, एकान्त ( स्त्री, पशु, पंडक रहित ) स्थळमां, अथवा तो अन्यने माटे धावेल मकानमा साधुए रहें जोइए. (६). संयम पाळनार साधुए जीव जंतु राहेत, आत्माने अबाध [स्वाध्यायमां अंतराय न आवे एवा ], अने स्त्री रहित स्थळमां रहें. [७]* साधुए पोते मकान बांधवुं नहि तेज वीजा पासे बंधावं नहि; कारण के घर बांधवामां त्रस अने स्थावर तेमज सूक्ष्म अने चादर जीवनी हिंसा थाय छे. मांटे साधुए घर बांधवाना आरंभ समारंभयी दूर रहें. (८-९). तेमज बळी साधु पोते आहार-पाणी रांधवं नहि तेमज बीजा पासे रंधावं नहि त्रस अने स्थावर जीवनी दया जाणीने साधुए पोते रांधवं नहि, अन्य पासे रंधावं नहि. (१०] जळ, धान्य, पृथ्वी अने काष्टने विषे रहेता जीवो आहार- पाणीथी [पकाववाथी] हणीय छे, तेला माटे साधु संघ- रंधावं नहि. [११]. *मो. जेकोबी आ गाथानो एवो अर्थ करेछे के " संयमवान साबुए स्वच्छ, गीच वस्ती वगरना अने स्त्री रहित स्थळमां रहें. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003693
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Mohanlal Damodar
PublisherMehta Mohanlal Damodar
Publication Year
Total Pages352
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy