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________________ 2००००००००००००००1004400100hein h0000000 सोच्चाणं फरुसा भासा दारुणा गाम कंटगा । तुसीणीओ उवि हिज्जा न ताओ मणसी करे ॥२५॥ हओ न सं जले भिख्खू मणं पि न पओसए । तितिख्खं परमं नच्चा भिख्खू धम्मवि चिंतए ॥ २६ ॥ समणं सं जयं दंतं si'हणिज्जा कोई कथ्थइ । नथ्थि जीवरस नासोत्ति एवं पेहेज्ज सं जए ॥ २७ ॥ दुक्करं खलु भोनिच्चं अणगाररस भिख्खूणो । सव्वंसे जाइयं होइ नथिकिंचि अजाइयं ॥२८॥ गोयरग्गपविठ्ठस्स पाणीनोसूपसारए । सेओ आगारवासोत्ति इइ भिख्खू न चित्तए ॥ २९ ॥ १. कोइ प्रतमा — उच्चहेजा ' ' हणेज्जा' छे. | कठोर, कंटक समान भाषा सांभळीने, मौन्य धारण करीने तेने काइ हेसायमां गणवी नहि, अने एवी भाषा बोलनार उपर द्वेष करवो नहि. | [२५].(१३) साधुने कोइ मार मारे तो पण तेणे कोप करवो नहि, तेपज मनी पण तेनुं बुझं इच्छ, नहि; परंतु क्षमा ए उत्कृष्ट | धर्म छ एम जाणीने दश वध यति धर्मनुं चिंत्वन कर. [२६]. कोइ अनार्य, संयममा दृढ अने जितेन्द्रिय साधुने, मार मारे तो | तो तेणे एम विचाखु के 'एथी काइ मारा आत्मानो नाश थतो नथी.' ( अर्थात्-पण जो शरीर नाशना अवसरे हुँ क्रोध करीश | तो मारा धर्मरुप जीवितनो नाश थशे एटले मारो धर्म हारी जइश.)२ [२७. (१४) संकेत रहित साधुने, याचवाथी सर्व वस्तु मळवी दोहिली छे, तेमज याचना सिवाय काइ मळी शकतुं नथी. [२८]. गोचरीन विषे फरता साधु तरफ [सर्व दाता, ग्रहस्थनो] | हाथ हमेशा खुशीथी लंबातो नथी; पण तेथा साधुए एम न धार के आथी ग्रहस्थाश्रम वधारे साग.3 (२९). १. अहिं अर्जुनमालीन दृष्टांत टीकाकार आपे छे. २. स्कन्दाचार्यना पांचप्तो शिष्यतुं दृष्टांत टीककारे अहं टोकेलं छे. | ३. आ याचना परिसह उपर श्री वळदेव रुपीश्वरनुं दृष्टांत समज. ०००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००० Jain Education Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003693
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Mohanlal Damodar
PublisherMehta Mohanlal Damodar
Publication Year
Total Pages352
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size20 MB
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