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________________ उ.अ. अणगार गुणेहिंच पकप्पमि तहे वय । जे भिख्खू जयई निसन अछइ मंडले ॥ १८ ॥ पावसुयप्पसंगेसु 1. मोहठाणेसु चे वय । जे भिख्खू जयई निच्चसेन अछइ मंडले ॥ १९ ॥ सिडाइगुण जोगेसु तित्तीसा सायणा सुय । जे भिख्खू जयई निच्चांसेन अछुइ मंडले ॥ २० ॥ इइ एएसु ठाणेसु जे भिख्खू जयई सया । खिप्पंसे सव्वसंसारा विप्पमुच्चइ पंडिए तिबेमि ॥ २१ ॥ ® ॥ इति चरणविहंनाम झयणं एकत्तीसं सम्मत्तं ॥ ७ | जे साधु *अणगारना सत्तावीश गुणने विषे अने प्रकल्पना [ श्री आचारांग सूत्रना] १अट्ठावीश अध्ययनने विषे सदा यत्न करे छे ते चतुर्गति संसारथी मुक्त थाय छे. [१८]. जे साधु ओगणत्रीस पापश्रुत प्रसंगी अने त्रीस मोह स्थानथी निवर्तवाने । सदा यत्न करे छे ते चतुर्गति संसारथी मुक्त थाय छे. [१९], जे साधु श्री सिद्धना एकत्रीस गुणने विषे, अने [ मन, वचन कायाना] योगना बत्रीस भेदने विषे सदा यत्न करे छे अने तेत्रीस प्रकारनी आशातनाथी निवर्ते छे ते चतुर्गति संसारथी मुक्त थाय छे.[२०]. जे पंडित साधु उपर वर्णवेलां स्थानोने विषे सदा यत्न करेछे ते चतुर्गति रुप संसारथी शीघ्र मुक्त थायछे.[२१].] * एकत्रीसमें अध्ययन संपूर्ण. * ०००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००० 20०००००००००००००००००००००००० * मूळ गाथामां' अणगार' शब्द छे छतां जेकोबी तेनो अर्थ 'संसारी' करे छ.१. श्री आचारांग सूत्रमा हाल चोवीश अध्ययन छे, पण अगाउ अहावीश हतां एम मनाय छे. Jain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003693
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Mohanlal Damodar
PublisherMehta Mohanlal Damodar
Publication Year
Total Pages352
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size20 MB
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