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________________ गाहासोलसएहिं तहाअस्सं जमंमिय । जे भिख्खू जयई निच्चसेन अछइ मंडले ॥ १३ ॥ बंभमि नायजयणेसु ठाणेसु असमाहिए । जे भिख्खू जयई निच्चंसेन अछइ मंडले ॥ १४ ॥ एगविसाए सबलेसु बावीसाए परिसहे।। जे भिख्खू जयई निच्चसेन अछइ मंडले ॥१५॥ तेवीसइ सुयगडे रूवाहिएसु सुरेसुय । जे भिख्खू जयई निच्चांसेन अछइ मंडले ॥ १६ ॥ पणवीस भावणाहिं उद्देसेसु दसाइणं । जे भिख्खू जयई निच्चसेन अछा मडले ॥ १७ ॥ ०००००००००००००००००००००००००००००००००००. जे साधु सोळ गाथाना ( एटले श्री सूत्र कृतांग अथवा श्री सुगडांगजी सूत्रना प्रथम श्रुत स्कन्धना ) अध्ययनने विषे, अने संयमना सत्तर भेदथी विपरीत न वर्तवाने विष सदा यत्न करे छे, ते चतुर्गति संसारथी मुक्त थाय छे. (१३). जे साधु ब्रह्मचर्यना अढार भेदने विष, श्री ज्ञाताजीना ओगणीस अध्ययन [प्रथम स्कन्ध ]ने विवे अने समाधिना वीश स्थानकथी विपरीत न वर्तवाने सदा यत्न करे छे ते चतुर्गति संसारथी मुक्त थाय छे. (१४).जे साधु एकवीश प्रकारनां शबल [ अशुभ कृत्यो थी, अने बावीश परिसहथी दूर रहेवाने सदा यत्न करे छे ते चतुर्गति संसारथी मुक्त थाय छे. [१५]. जे साधु सूत्रकृतांगनां त्रेवीश अध्ययनने विषे अने तेथी एक अधिक एटले चोवीश देव [१० भवन पति+८ व्यंतर+५ ज्योतिष+१ वैमानिक-२४ अथवा तो ऋषभ देवादि २४ तीर्थकर ] ने विषे सदा यत्न करे छे ते चतुर्गति संसारथी मुक्त थाय छे. (१६). जे साधु पंच महाव्रतनी पचीश भावनाने विषे अने दशाश्रुत स्कन्ध, कल्प अने व्यवहार सूत्रना छवीश उद्देशने विषे सदा यत्न करे छे ते चतुर्गति संसारथी मुक्त थाय छे. (१७). Jain Education Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003693
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Mohanlal Damodar
PublisherMehta Mohanlal Damodar
Publication Year
Total Pages352
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size20 MB
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