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________________ ००००००० झाण झायमाणे वेयणिज्ज आउयं नाम गोत्तं चएण चत्तारिविकम्मसे जुगवं खवेइ ॥ ७२ ॥ तउ उरालिय तेय कम्माइंच सव्वाहिं विप्पजहाणाहिं विप्पजहित्ता उजुसेढिपत्ते अफुसमाणगई उर्ल्ड एगसमएणं अविग्गहेणं तथ्थ गंता | सागारो वउत्ते सिझइ बुझइ मुच्चइ परिनिव्वायइ सव्वदुख्खाण मंतं करेइ ॥ ७३ ॥ एस खलु सम्मत्त परक्कमरस | अझयणस्स अठेसमणेणं भगवया महावीरेणं आघविए पन्नविए परुविए दंसिए निदंसिए उवदंसिए तिबेमि . ७ ॥ इति समत्त परकम्मनाम झयणं आगनतिसमं सम्मत्तं ॥ २९ ॥ ॐ । अक्षरनो उच्चार करवामां जेटलो वखत लागे तेटला वखतमा ते शुक्ल-ध्याननी चोथी पंक्तिमां पहोंचे छे अने शैलेशी अवस्था अनुभव छे, अने वेदनी, आयु, नाम अने गोत्र ए चार कर्मना अंश एकी साथे खपावे छे. (७२). ७३. वेदनीयादि चारे कर्म खपाव्या 8 पछी *औदारिक, १ कार्मण अने २ तेजसादि शरीर तजीने जीव ऋश्रेणी [ सीधी लीटी ने स्वरुप धारण करीने एक क्षणमा कशाने स्पर्श कयो सिवाय अने लेश मात्र जग्या रोक्या सिवाय उर्ध्व गतिने विपे चाल्यो जाय छे अने मोक्ष स्थानने विष पहोंच्या पछी साकार रुप ज्ञानोपयोग युक्त धारण कर छ; अने सिद्धि, बुद्धि, मुक्ति अने निर्वाण प्राप्त करेछे अने सर्व दुःखनो अंत आणे छे. [७३]. सम्यक्त पराक्रमनो सत्यार्थ आ प्रमाणे श्रमण भगवंत श्री महावीर देवे कह्यो छे, प्रकट कर्यो छे, मरुप्यो छे अने दर्शाव्यो छे. * ॥ ओगणत्रीसमें अध्ययन संपूर्ण ॥ * * जे शरीरमा हाड मांस होय ते. १-२ जीव साथे आबे सुक्ष्म शरीर रहे छे. देवताओने औदारिक शरीर न होय पण तेने बदले वैक्रिय शरीर होय, जेथी ते नानू मोटु स्वरुप धारण करी शके. पांच, आहारक शरीर. चौद पूर्व धारी मुनीराज तीर्थकरनी 18 18 रिद्धि ममुख जोवा एक हाय प्रमाण देह धारण करे ते. Jain Education Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003693
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Mohanlal Damodar
PublisherMehta Mohanlal Damodar
Publication Year
Total Pages352
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size20 MB
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