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| याए तप्पढमयाएणं ज्हाणुपुट्विं अठाविसइ विहं मोहणिज कम्मं उग्घाणु । पंचविहं नाणावरणिज्जं नवविहं दस| णावरणिज्ज पंचविहं अंतराय एए तिणिवि कम्मसे जुगवं खवेइ तओ पवा अणुत्तरं अणतं कसिणं पडिपुणं निरावरणं वितिमिरं विसुद्धं लोगा लोग प्पभावगं केवल वरनाण दसण समुप्पाडेइ जाब सजोगी भवइ ताव इरियावहियं कम्मं निबंधइ सुइ फरिसं दुसमयठिइयं तंजहा तंपढम समए बद्धं बीइय समए वेदियं तइए समए निजिनं तं बधं पुठं उदिरियं वेइयं निजिन्न सेयकालेय अकम्मयावि भवइ ॥ ७१ ॥ अहाउयं पालइत्ता अंतोमुहुत्तधावसेसाउए जोग निरोहं करेमाणे सहमकिरियं अप्पडिवाइयं सुक्कझाणं झायमाणे तप्पढमयाए मणजोगं निरंभइ8 मणजोगं निरूभइत्ता वयजोगं निरंभइ वइजोगं निरंभइत्ता कायजोगं निरंभइ कायजोगं निरुभइत्ता आणापाण | निरोहकरेई आणापाण निरोहंकरित्ता इसि पंच रहस्स ख्खरुच्चारणध्धाएयणं अणगारे समुच्छिन्न किरियं अनियहि सुक्क
लोक प्रकाशक एवं केवल ज्ञान-दर्शन प्राप्त करे छे, ज्यां सुधी जीव संयोगी एटले मन, वचन, कायाना व्यापारमा ] रहे छे त्यां
सुधी ते इयों-पथिक [ एटले हालवा चालवाथी लागता कर्म बांधे छे ते सुख स्पर्शनी स्थिति मात्र द्वि समय (बे पळ ) नी छ; का प्रथम पळे ते कर्म बंधाय छ, बीजी पळे ते अनुभवाय छे अने त्रीजी पळे तेनो लय थाय छे. आ प्रमाणे कर्म बंधाय छे, जीवने ते | al स्पर्श करे छ, तेनो उदय थाय छे, ते अनुभवाय छे अने तेनो नाश थाय छ, अने भविष्यकालमां जीव कर्मरहित बने छे. (७१). 8 ७२. आ प्रमाणे केवल-ज्ञान प्राप्त थया पछी अने अवशेष मुहूर्त मात्र आयुष्य गाळ्या पछी जीव मन, वचन, कायाना व्यापारनो निरोध करे छे अने शुक्ल ध्याननी त्रीजी पंक्तिमा प्रवेश करे हे, जेमाथी पाछा पडवापणुं नथी अने जेमा मात्र सूक्ष्म क्रियानीज जरूर छ. प्रथम ते मनोयोग रुंधे छ, पछी वचन-योग रुंधे छे, त्यारपछी काया-योग रंधे के अने छेवटे स्वासने रुंधे छे, पांच इस्त्र
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