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________________ उ.अ. सामाइए भंते जिवे कि जणयइ सामाइएणं सावजं जोग विरई जणयइ ॥ ८ ॥ चओविसथ्थएणं भंते जीवे किं जणयइ । चओविसंथ्थएणं दंसण विसोहिं जणयइ ॥ ९॥ वंदणएणं भंते जीवे किं जणयइ । वंदएणं निया गोयं कम्म खवेइ उच्चागोयंकम्मनिबंधइ सोहगंचणं अप्पडिहयं आणाफलं निवत्तइ दाहिणभावंचणं जगयइ ॥ १० ॥ पडिक्कमणेणं भंते जीवे किं जणयइ पडिक्कमणेणं वयछिदाई पिहेइ पिहिय वय छिदे पुण जीवे निरुध्यासवे असबल चरित्ते अठ्ठस पवयणमायासु उवउत्ते अपुहत्ते सुप्पगिहिए विहरइ ॥ ११ ॥ ८. सामायिक एटले समता, समानवृत्ति अथवा नैतिक अने मानसिक शुद्धिथी जीव सावध * पाप-योगथी निवर्ने छे. (८). 18 ९. चतुर्विश (चोवीश) जीनवरो (तीर्थकरो)नी स्तुति करवाथी जीव दर्शन-विशुद्धि अथवा सम्यक्तनी निर्मळता मेळवी शके छे. [९]. १०. गुरुने वंदन करवाथी नीच गोत्रमा जन्म अपावनार कर्मनो क्षय थाय छ; अने उच्च गोत्रनां (मां जन्म थाय एवां) कर्म बंधाय छे.. ते सर्व लोकनी प्रीति मेळववाने भाग्यशाली बनेछे अने अप्रतिहत आज्ञा ! फळ [प्रभुत्व] पामे छे तथा सर्व लोकनी शुभेच्छा मेळवी शके छे. (१०).११. प्रतिक्रमण पिडिक्कमणु] करवाथी जीव व्रतमां थता अतीचारनुं २ निवारण करी शके छे; बळी ते बडे जीव आश्रवोने ३ रुंधी शके छ, निर्मल चारित्र पाळी शके छ, अष्ट प्रवचनने ४ विषे सावधान रही शके छे, संयम पाळवामां आळस करतो नथी; परंतु सन्मार्गने विषे इन्द्रियोने स्थापित करीने संयम मार्गे विचरे छे. (११). ___ *Sinful. 1 Looked upon as an authority लोक प्रियता अने बहु मानपणानी परिसीमा बतावीछे. २ Trans18 gressions व्रतनी विराधना चार प्रकारे थइ शके छे. अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतीचार, अणाचार ते पिनल कोडना, Intention, preparation, attempt and completion ने मळता छे. ३ कर्मोनो चाल्यो आवतो प्रवाह Flowing of the Karmans ४ पांच सुमिति अने प्रण गुप्ति २४मा अध्ययनमा ते विषे विस्तार पूर्वक विवेचन छे. ००००००००००००००००००००० Jain Educationa intematonal For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003693
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Mohanlal Damodar
PublisherMehta Mohanlal Damodar
Publication Year
Total Pages352
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size20 MB
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