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________________ ०००००००००००००००..... अध्ययन २९. सम्यक्त पराक्रम. सूर्यमे आउसंतेणं भगवया एवमख्खायं । इह खलुसमत्त परक्कमे नामअझयणे समणेणं भगवया महाविरेणं कासवेणं पवेइयं जं सम्मं सदहित्ता पत्तिय इत्ता रोयइत्ता फासइत्ता पालइत्ता तीरइत्ता किट्टइत्ता सोहइत्ता आराहइत्ता आणाए अणुपालइत्ता बहवे जीवा सिझंति बुझंति मुच्चंति परिनिव्वायति सम्बदुख्खाण मंतंकरिंति तस्सणं अयमठे एवमाहिज्जइ तंजहा ७ अध्ययन २९. ® हे आयुष्मन् ! नीचेनुं व्याख्यान में श्री महावीर भगवान पासेथी सांभळ्युं छे :-आ सम्यक्त पराक्रम नामर्नु अध्ययन काश्यप गोत्रने विषे उत्पन्न थयेला श्रमण भगवंत श्री महावीरे कहयुंछे ; जे अध्ययन श्रध्धा पूर्वक मानवाथी, तेना प्रति रुचि राखवाथी, तेनो स्वीकार करवाथी, ते रुडी रीते पाळवाथी, ते प्रमाणे वर्तवाथी, तेनो अभ्यास करवाथी, ते समजवाथी, तेनी आराधना करवाथी अने गुरुनी आज्ञानुसार तेनुं सेवन करवाथी अनेक जीव सिधिने पाम्या छे, तत्वज्ञान प्राप्त करी शकया छे, कर्म बन्धनथी मुक्त थया छे, निर्वाण पहोंच्या छे अने सर्व दुःखनो अंत आणी शकया छे. आ सम्यक्त पराक्रम अध्ययनमां नीचेनी बाबतोन वर्णन करेलु छ : ०००००००००००००००००००० ००००० १ श्री सुधर्मास्वामी जंबुस्वामी प्रत्ये कहेछे, Jain Education Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003693
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Mohanlal Damodar
PublisherMehta Mohanlal Damodar
Publication Year
Total Pages352
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size20 MB
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