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________________ ०००००० ००००००००००००००००००००००००००००००. मुहपोति पडिलेहिता पडिलहिज गुगं ।गुडगलाइयंगुलिउ वथ्थाई पडिलेहए ॥ २३ ॥ उद्बुधिरं अतुरियं पुव्वं तावथ्थमेव पहिलेहे । तोबिइयं पपफोडेज्जा तइयंच पुणो पमज्जिज्जा ॥ २४ ॥ अणचावियं अवलियं अणाणुबंद्धि अमोसलिं चेव । छप्पुरिमानवरकोडा पाणिपाणि विसोहणं ॥ २५ ॥ आरभडा सम्महा वज्जयब्वाय मोसली तइया। पपफोडणा च उथ्थी विस्वीचा वेइयाछठा ॥२६॥ प्रथम मुख बलिका [मुहपत्ती] अने पछी गुच्छार्नु पडिलेहन करवं. त्यारपछी गुच्छाओ आंगळीओ वति झालीन वस्त्रना पड पडिलेहवा. [२३]. जमीनने अडके नहि ? एवी रीते प्रथम वस्त्रने स्थिर अने दृढ पकड अने धीमे रहिने तपासवं, पछीथी तेनां पड पहोळां करवां अने छेवटे पुजबु. (२४). वस्त्रने हलाव्या अथवा मसळ्या विना एवा रीते पहोळु कर के जेथी तेनी घडी छूटी थइ जाय अने वस्त्रना पड एक वीजा साथे घसाय नहि. नव २ अखाड, नव पखोड अने छ ४ पूरिमानी पद्धतिए द्रष्टियी बराबर तपास्या पछी तेनुं पडिलेहन कर अने पछीथी हाथने विषे जीव जंतु होय ते शोधीने दूर करवां [२५]. [2] कार्यनो आरंभ करवामां, ६.(२) वस्त्रना खुणा परस्पर मेळववामां, [३] वस्त्रनी घडी करवामां, (४) रज खंखेरवामां, [२] चारे वाजु नजर फेरवतां बनने नीचे मुकवामां, (पडिलेहेला वस्त्रने अग पडिलेहेलां वस्त्र के धरती उपर मूकवामां) अने [६]वेदिका५ (घुटणभर वेसी पडिलहन करवामां)ए छ प्रकारे पडिलहन करवाया गमावनो दोष टाळवी. (२६). १. आने बदले प्रो. जेकोबी लाखे छे के-सीधा उभा रहीने. २-३-४ 'आच्छोहन, पस्फोहन, पूरिभा' वस्त्राने झाटकवां फेरवां वीगरेनी वारिक विधिो छे. ए संभदाय गम्य होवाथी अत्र विस्तार कर्यों नथी शिथिलता छांडी सावधानता राखवा माटेज पाये विशेष स्पष्टिकरण करेलुछे. श्री ठाणांगजी सूत्रमा आ संबंध विस्तार पूर्वक विवेचनछे जे श्रावको करतां साधु मुनीराजने विशेष उपयोगी छे. आ पछीनी त्रण गाथामां पण एज बावतंछ. ५ वेदिकानो मूळ अर्थ ओटलो. अहिं धुंटणपर बेसवानो भावार्थ लेवानो छे. दीपिका टीकाशं पांच प्रकारे वेदिका वर्णवेली छे. " उधवेदिका, अधोवेदिका, तिर्यगवेदिका, उभयवेदिका, एकवेदिका" घंटण उपर बे के एक हाथे जुदी जुदी रीते राखीने पडिलेहन करे तो दोप लागे छे. ०००००००००००००००००००० Jain Education Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003693
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Mohanlal Damodar
PublisherMehta Mohanlal Damodar
Publication Year
Total Pages352
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size20 MB
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