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________________ ००००००००००30666 उ.अ.।। अणेगाणं सहस्साणं मझे चिठसि गोयमा तेय ते आमि गछंति कहते निज्जिया तुमे ॥ ३५ ॥ एगे जिए | जिया पंच पंच जिए जिया दरस । दसहाओ जिणित्ताणं सव्य सत्तू जिणामिहं ॥ ३६ ॥ सत्तूय इइ के कुत्ते केसी गोयम मब्बवी । तउ केसि बुवंतंतु गोयमोइणमब्बबी ॥३७॥ एगप्पा अज्जिए सतू कसाया इंदियाणिय । तेजिणी ताजहानायं विहरामि अहंमुगी ॥३८॥ साहुगोयमपन्नाते छिन्नोमे संसओ इमो । अन्नोवि संसउ मझं तमे कहसु। गोयमे ॥३९॥ दीसंति बहवेलोए पास बधा सरिरीणो । मुक्कपासो लहुभूओ कहंत विहरसी मुगी ॥४०॥ " हे गौतम ! आप हजारो शत्रुओनी बच्चे उभा छो, अने ते शत्रुओ आपनी सन्मुख धसी आवे छे, तेने आप शी रीते जीती शकया छो? [३५].* गौतम कहेछ," एकने जीतवाथी पांचने जीती शकाय छे. अने पांचने जीतवाथी दशने जीती शकाय छ । अने आ दश गणी जीतथी सर्व शत्रुओने जीती शकाय छे." [३६]. ए सांभळीने केशि-कुमार कहे छे, " हे गौतम ! आप शत्रु कोने कहो छ। ? " केशि-कुमारनुं आ वचन सांभळीने गौतम कहे छ :- [३७]. " एक आत्मा जे अजित श गणाय छे तेने जीतवाथी चार कपायने (क्रोध, मान, माया अने लोभने ) जीती शकाय छ; अने सेने जीतवाथी पांच इन्द्रिओने वश करी शकाय छे. ए रीते दश शत्रुओ[१ आत्मा+४ कषाय+५ इन्द्रिओ ने जीतवाथी सर्व शत्रुओ जीताय छे, अंने तेमने यथा न्याय जीतीने हुँ सुखे विचरुं छु. (३८). ए सांभळीने केशि कुमार कहे छे, " हे गौतम .........वगेरे गाथा २८ प्रमाणे, (३९). " हे मुनिश्वर ! आ. लेकिने विषे अनेक जीव पाशथी बंधायेला नजरे आवे छे. आय ते बंधन तोडीने शीरीत मुक्त धया छोते मने कहो." [४०]. *श्री पार्श्वनाथ अने महावीर भगवानना अनुयायीओ बच्चे चार अने पांच महावृत तथा साधुओना बाह्याचार संबंधी मत भेदर्नु आगली गाथाओमां समाधान कर्या पछी, आ गाथाथी जिन धर्मना सामान्य सिद्धांतोनु शिष्य-श्रोता वर्गनी जाण अने उपदेशने माटे । मिरुपण करेलुं छे. AAA८29000000000000000 Jain Education Interational For Personal and Private Use Only www.anelbrary.org
SR No.003693
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Mohanlal Damodar
PublisherMehta Mohanlal Damodar
Publication Year
Total Pages352
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size20 MB
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