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________________ 9... अप्पपाणअप्पबीयमि पडिछन्नंमि संवुडे । समयं संजए भुंजे जयं अप्परि साडियं ॥ ३५ ॥ सुकडेत्ति सुपक्कित्ति | सुछिन्ने सुहडे मडे । सुनिटिए सुलटेत्ति सावजं वज्जए मुणी ॥३६॥ रमए पंडिए सासं हयं भदं ववाहए । बालं समइ सासंतो गलियरसंव वाहए ॥ ३७॥ खडुयामे चवेडामे अक्कोसाय वहाय मे । कल्लाण मणुसासंतो पाव दिहित्ति, मन्नई ॥३८॥ पुत्तो मे भायनाइत्ति साहु कल्लाण मन्नइ । पावदिठिओ अप्पाणं सासं दासित्ति मन्नई ॥३९॥ उपरथी अने चौतरफथी ढंकायेली जग्योए बेसी, बीजा साधुओ संगाथे, बे इन्द्रियादिक जीव अने बीज रहीत खोराकनो | आहार, जयणा अने पोताना आचार विचार प्रमाणे करवो. [३५]. सारी रीते तैयार करेलुं अन्न वगरे, सारी रीते पकवेल घेवर वगैरे, मसालादार शाक पांदडं अने अथाणु, स्वादिष्ठ लाडु वगेरे, मीठां अने मसालेदार भोजन साधुए त्यागवां जोइए. (३६). जेम पळोटायेला घोडाने शीखवतां अश्वारने आनंद उपजे छ तेम विनित शिष्यने शिक्षण आपतां गुरुने आनंद उपजे छे; पण अणपळोटायेला अश्वने शखवतां जम अश्वारने कंटाळो उपजे छ तेम अविनित शिष्यने शिक्षण आपतां गुरुने खेद उपजे छे. (३७). अविनित शिष्य एम धारे छे के:-'गुरु मने टोंके छे, मारे छे, दुर्वचन कहे छे, दंड दे छे; कोटवाळ जेम बंदीवानने मारे तेम मने मारे छ; टुंकामां परम हितकारी शीख देनार आच यने ते पाप दृष्टिवालो [द्वेषी ] माने छे. (३८). विनित शिष्य गुरुने पोताना परम हितकारी समजे छे अने माने छे के:-'गुरु मने पोताना पुत्रनी माफक, भाइनी माफक अथवा नजीकना सगानी माफक राखे के.' पण अविनित शिष्य एम समजे छ के गुरु मने दास जेवो गणे छे. [३९]. १. प्रोफेसर जेकोबीना शब्दो-" A good pupil has the best opinion (of his teacher ), thinking I that he treats him like his son or brother or a near relation, but a malevolent pupil Fel imagines himself treated like a slave." ......992040०. .... Jain Education intomational For Personal and Private Use Only wwwda.org
SR No.003693
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Mohanlal Damodar
PublisherMehta Mohanlal Damodar
Publication Year
Total Pages352
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size20 MB
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