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________________ me. तीसेसो वयणं सोचा संजयाए सुभासियं । अंकुसेण जहा नागो धम्मे संपडिवाइओ ॥ ४८ ॥ मणगुत्तो वयगुत्तो उ.अ. M कायगुत्तो जिइंदिओ । सामणं निच्चलं फासे जावजीवं दढव्यउ॥४९॥ उग्गं तवं चरित्ताणं जाया दुन्निवि केवली। सव्वं कम्मं खवित्ताणं सिद्धि पत्ता अणुत्तरं ॥ ५० ॥ एवं करंतिसंबुद्धा पंडियापवियख्खणा । विणियति भोगेसु जहासेपुरिसोत्तमो तिबेमि ॥५१॥ *६॥ इति रहनमियनाम झयणं बाविसं सम्मत्तं ॥ २२ ॥ TNA ०००००००० 000000000000000000000000000००००००००० राजिमती साध्वीनां आवां सुभाषित वचन सांभळीने हस्ति जेम अंकुशथी पाछो फरेछे तेम रथनेमि धर्म मार्गमा पाछो फर्यो.* [४८]. मन, वचन, कायाये गुप्त रहीने, इन्द्रिओने वश राखीने, अने पंच महाव्रतमा दृढ रहीने, रथनेमिए निश्चळ मनथी जींदगी । पर्यंत श्रमण-धर्म पाळ्यो. [४९]. उग्र तप१ आदरीने तेओ बन्ने ( राजिमती अने रथनेमि ) केवली पदने पाम्यां अने सर्व कर्मनो क्षय करीने सर्वोत्तम सिद्ध गतिने प्राप्त थयां.(५०]. तत्वना जाण पंडित, विचक्षण अने विवेकी पुरुषो आ प्रमाणे वर्ने छ. तेओ पुरुष वर्यमा उत्तम एवा रथनमिनी पेठे निवर्ने छ.२ [२१]... __ * वावीसमुं अध्ययन संपूर्ण. * * टीकाकार देवेन्द्र अहिं नूपुर पंडित, दृष्टांत टांके छे जे विस्तारथी श्रीमद् हेमचंद्राचार्य कृत परिशिष्ट पर्वमां छे. १. Severe austerities. २. नवमा अध्ययननी छली गाथा साथे सरखावो. Jain Education Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003693
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Mohanlal Damodar
PublisherMehta Mohanlal Damodar
Publication Year
Total Pages352
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size20 MB
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