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________________ २१ १६८ अदा इमाण जेभाव ओलंपकरेइ भिख्खू । भयभेरवा तथ्य उवैति भीमा दिव्या मणुस्वायत हातिरि ॥ १६ ॥ परीसहा दुव्त्रिसहा अणेगेसीयंतिजथ्था बहुकायरानरा । सेतथ्यपत्तेन वहिज्ज भिख्खू संगाम सीखेइव नागराया ॥ १७ ॥ सीओसिणा दंसमसाय फासा आर्यका विविहा फुसति देहं अक्कुक्कुओ तथ्यहिया सएज्जारयाई खेविजपुरे कडाई || १८ || पहाय रागंचतहेव दोसं मोहंच भिख्खू सययंवियख्खणो । मेरुव्ववारण अकंप माणो परीसहे आय गुंत्तेसहेज्जा ।। १९ ।। आ संसारमां जुदाजुदा मनुष्यना जुदाजुदा अभिप्राय होय छे; ते सघळाने साबुए तेना खरा स्वरुपमां समजवा [ मूकवा ] जोइए ; देव, मनुष्य अने तिर्येच संबंधीना महा घोर अने भयानक दुःखो उपजे छे, ते परिसहो सहन करवां अति कठिन छे अने . कार माणसो तेनाथी हारी जाय छे; पण जेम संग्रामने मोखरे रहेलो राज-हस्ति [ मार पडवा छतां पण ] न्हासतो नथी, तेमजे भिक्षुक एवा परिसह आवी लाग्या छतां पण तेनाथी चलित थतो नयी ते खरो साधु कहेवाय. (१६-१७), शीत, उष्ण, डांस, मच्छरादि अने नाना प्रकारना रोग आवीने शरीरने स्पर्श करे छे ; कांइपग दुःखोद्गार काढ्या सिवाय ए सघळा परिसह तेणे सहन करवा अने पूर्वे करेलां पापरूपी मळनो क्षय करवो. (१८). राग, द्वेष अने मोह छोडीने, पंडित साधुए निरंतर सावधान अने हे अने जेम मेरु पर्वत वायराथी चलित थतो नथी तेम तेणे पग कोइ उपसर्गथी चळवं नहि, अने आत्म-गुप्त थइने ( सावध रहीने) सघळा परिसह सहन करवा. [१९]. * आने बदले मो. जेकोची एवो अर्थ करे छे के - " पूर्वे भोगवेला भोगनुं स्मरण कर नहि. " मूळ पाठमा 'रयाईखे विज्ज' छ जेनो अर्थ कर्मरुपी रज खपावे एम थइ शके छे. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003693
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Mohanlal Damodar
PublisherMehta Mohanlal Damodar
Publication Year
Total Pages352
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size20 MB
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