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________________ १०.8 भारियामे महाराय अणुरत्त मणुव्वया । अंसुपुन्नेहिं नयणेहिं उरमे परिसिंचई ॥२८॥ अन्नपाणंचएहाणंच गंधमल्ल विलेवणं । मएनायमनायंवा सावालानोव जई ॥२९॥ खणंपिमे महारायं पासाओ विन फिटुई । नयदुख्खाविमोयति एसामझ अणाहया ॥ ३० ॥ तओहं एवमाहंसु दुख्ख माहुपुणो । वेयणा अणुभविउंजे संसारंमि अणंतए ॥ ३१ ॥ सइंच जइमुच्चेजा वेयणा विउलाइओ। खंतोदंतो निरारंभो पत्रइए अणगारियं ॥ ३२ ॥ एवंच चिंतइत्ताणं पसुत्तोमि नराहिवा । परियत्नंतीइ राइए वेयणा मेखयंगया ॥ ३३ ॥ तओकल्ले पभायम्मि आपुछित्ताण बंधवे । खंतोदता निरारंभो पव्वइओ अणगारियं ।। ३४॥ ____“हे महाराजा ! मारी स्नेहाळ अने पतिव्रता स्त्री पोताना नेत्रनां अश्रुए करीने मारा हृदयने सींचती हती. (२८). " ते | सुज्ञ बालाए खान, पान, स्नान, सुगंध, पुष्पमाल अने अर्चनादिनो उपयोग मारा जाणतां या अजाणतां कदि कयों नहि. [२९]. 18" हे महाराजा! ते बाळा मारी पासेथी एक क्षण मात्र पण उठीने जती नहि, छतां ते मने मारा दुःखथी मुकावी शकी नहि, 18| तेथी हुँ कहुंछ के हुं अनाथ . [३०]. " ते वारे हुँ एम कहेवा लाग्यो के आ अंतर हित संसारमा भव-चक्रमां] फरी फरीने वेदना भोगववी ए अति दोहितुं छे. [३१]. "जो एकबार हुँ आ असह्य वेदनाथी मुक्त थाउं, तो हूं क्षमावंत, जितेन्द्रिय अने निरारम्भा [आरंभरहित] अणगार थाउं. (३२). " हे नराधिप ! आ प्रमाण चिंत्वन करतो करतो हूं निद्रामां पडयो. तेज रात्रिने विषे मारी सर्व वेदना समी गइ. [३३]. " बीजे दिवसे प्रभातमां, सगांसंबंधीनी आज्ञा लइने, क्षमावंत, जितेन्द्रिय अने निरारम्भ 18 साधु पणुं में आदर्यु. (३४). १. Ceasing to act. राजा ! मारी स्नेहाळ अने पाने अर्चनादिनो उपयोग मारा 0000000000000000000०००००००००००००००० ने मारा दुःखथी मुकावा ने ०००००००००००००००००००००००००००००००००० Jain Education intonational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003693
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Mohanlal Damodar
PublisherMehta Mohanlal Damodar
Publication Year
Total Pages352
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size20 MB
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