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________________ 8 मा गलियरसेव करसं वयण मिछेपुणो पुणो । कसंव दछु माइन्ने पावगं परिवजाए ॥ १२ ॥ अणासवा थुलवया कुसीला उ.. मिउंपि चंडं पकरंति सीसा चित्ताणुया लहु दुख्खो क्वेया पसायए तेहु दुरासयपि॥१३॥नापुछो वागरे किंचि पुठोवा नालियं वए। कोहं असच्चं कुविज्जा धारिज्जा पियमप्पियं ॥ १४॥ अप्पाचंव दमेयव्वो अप्पाहु खलु दुद्दमो। अप्पादतो सुही होइ अस्सिलोए परथ्थय ॥१५॥ । १. पाठांतरे 'कुवेज्जा' 'धारेज्जा' छे __ अणपळोटायेलो अश्व जेम चाबुकनी राह जुए छे, तेम तेणे गुरुना आदेशनी वारंवार राह जोवी नहि; पण 18 जातवंत [पळोटायेलो] घोडो जेम चाबुक देखाने श्वारना भावे चाले छ, तेम विनित शिष्य गुरुनी अंग चेष्टा समजीने तेना भावे वर्ते छ अने पाप कमने तजे छे. [१२]. गुरुनी आज्ञानो भंग करनार, दुष्ट भाषग करनार अने मुंडा आचारवाळो शिष्य, क्रोध रहित गुरुने पण क्रोध उपजावे छे; पण गुरुनी इच्छानुसार वर्तनार अने वगर विलंबे कार्य करनार विनित शिष्य अति क्रोधी गुरुने पण प्रसन्न करी शके छे. [१३]. पूछया विना बोलवू नहि, अने पूछया पछी जूटुं बोल नहि, क्रोधने निष्फळ करवो अने इष्ट-अनिष्ट वचन सांभळीने ते उपर रागद्वेष करवो नहि. (१४). आत्मदमन कर, कारण के आत्मदमननुं काम अति दोहिटु छे. आत्मदमनथी आ लोके अने परलोके सुखी थवाय ७.४ (१५). 8 . अहिं टीकाकार चंद्ररुद्राचार्यनी कथा आपेलीछे..... टीकाकार आठसाववा कुल पुत्र अन मंत्रवादीनी कथा आपे छे. ४. आ | सत्य ठसाववा टीकाकार पल्लीपती चोर अने सिंचानक हाथीनां दृष्टांत टांके छे. मनुष्य मात्रने मनन अने मुखपाठ करवा लायक आ बेगाथाओ प्रोफेसर जेकोबीना शब्दोमां स्मरीए:-"Subdue your self, for the self is difficult to subdue; if your self is subdued, you will be bappy in this world and in the next. Better it is 0000000000000000 Jain Education Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003693
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Mohanlal Damodar
PublisherMehta Mohanlal Damodar
Publication Year
Total Pages352
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size20 MB
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