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________________ निसंते सिया मुहरी बुद्धाणं अंतिएसया । अठ जुत्ताणि सिख्खेज्जा निष्ठाणिउ वजए॥८॥अणुसासिउ न कुप्पिजा। उ.अ. खंति सेविज पंडिए । खुडेहिं सहसंसरिंग हासं कोडंच वज्जए ॥९॥ माय चंडालियं कासी बहुयं माय आलवे । कालेTajणय अहिज्जित्ता तओझाइज्ज एग्गओ ॥१०॥आहच्च चंडालियंकटु ननिन्हविज कयाइवि । कडं कडित्ति भासिज्जा अकंड नोकडित्तिय ॥११॥ १. पाठांतरे 'कुप्पेज्जा' छ. २. केटीक प्रतोमा 'सेवंज' छे. ३. केटलीक प्रनोमा 'एक्को' छे. ___आचार्यनी समीपे सदा शान्त (क्रोध रहित) थy; वाचाळ थर्बु नहि सिद्धान्त वाक्यो (ज्ञान तत्व )नुं ज्ञान मेळवषु अने *निशरर्थक शास्त्र स्त्री लक्षणादि दर्शक कोक शास्त्र, ज्योतिष, वैद्यक वगेरे]नो त्याग करवो. (८). [सूत्रार्थ शीखतां गुरु] कठण वचने शिखामण दे त्यारे डाह्या शिष्ये कोप न करवो पण क्षमा राखवी. क्षुद्र मनुष्यनी साथे संसर्ग, हास्य, क्रीडा वगेरे त्याग. (९). नीच्चरकर्म अने मिथ्या भाषण करवू नहि पण सिद्धान्त भणीने एकान्तमा धर्म ध्यान करवू. १०. कदाचित (क्रोधने लीधे) कांड इ जाय तो ते छुपाय नाही पण जा कयु हाय ता एम कहवुक में ते कयु छन कयु होय तो एम कहे के 'में ते कर्यु नथी. [११]. * संसार त्यागी साधुओने संयम मार्गमा बाध करनारा होबाथी, तेमने ते तद्दन [Worthless] निरर्थक छे, त्यागवा योग्य छे. 1. बालक तथा पापत्य दिक-प्रोफेसर हर्मन जैकोबी ते आखी गाथानो एवो अर्थ करे छे के :-"When repriruanded, a wise man should not be angry, but he should be of a forbearing mood; he should not associate, laugh, and play with mean man." २. चंडालियं-क्रोधादिक-निच्चकर्म. 200००००००००००० 0000००००००००००००००० ०००००००००००6.000 Jain Education Interational For Personal and Private Use Only
SR No.003693
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Mohanlal Damodar
PublisherMehta Mohanlal Damodar
Publication Year
Total Pages352
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size20 MB
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