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________________ 2000 परिव्वयंते अनियत्त कामे अहो यराओ परितप्पमाणे ! अन्नप्पमत्ते धणमेसमाणे पप्पोत्ति मच्चु पुरिसोजरंच ॥ १४ ॥ इमंचमे अश्थि इमंचणथ्थी इमंचमेकिच्च इमंअकिच्चं । तंएवमेवं लालप्पमाणं हराहरतित्तिकहं पमाओ ॥ १५ ॥ धणं पभूयंसह इथ्थियाहिं सयणा तहाकामणुणापकामं । तवंकए तप्पइ जस्सलोगो तं सव्वताहीणमिहेवतुझं ॥ १६ ॥ धणेणकिंधम्म धुराहिगारे सयणेणवा कामगुणेहिंचेव । समणा भविस्सामो गुणोहधारी बहिं विहारा अभिगम्मभिख्ख॥१७॥ जहाय अगी अरणी असंतो खारेघयंतिल्ल महातिलेसु । एमेवजाया सरीरंसिसत्ता समुछुइना सइनावचिठे ॥ १८ ॥ 2 काम भोग उपर आसक्त थइने माणस परिभ्रमण करे छ अने (अधूरी रहेली अभिलाषाओने माटे) रात्रि दिवस (आर्त, रुद्र ध्याने) परिताप कर्या करे छ, प्रमादथी (पारका) धननी तपासमां फर्या करे छे अने अंते जरा अने मृत्युने प्राप्त थाय छे [१४]. 18 “अमारी पासे आ वस्तु छ; अमारी पासे पेली वस्तु नथी ; अमारे आ कृत्य करवं छ; अमारे पेलुं कृत्य नथी करव; ते आ प्र माणे वात करतो होय छे एवामां काळ आवीने तेने घसडी जाय छे. आते केवो प्रमाद कहेवाय ? [१५]. ए सांभळीने पिता कहे छे. "हे पुत्रो! आपणी पासे धन घणुं छे, स्त्रीओ पण घणी छे, विशाळ कुटुंब अने सुंदर कामभोग पण छे; के जे वस्तुओ मेळववा 18 माटे लोको तप जप करे छे. संसारना ए सर्व सुख तमने मो माग्यां मळ। शके तेम छे." [१६]. ए सांभळीने पुत्र कहे छ, “ध मना अधिकारमा धन, स्वजन अने कामभोग शुं कामना छ ? अमे गुणसमुहने धारण करनार श्रमण थइशुं अने गामोगाम विहार 8 करीने भिक्षा मागीशु." [१७]. ए सांभळीने पिता कहे छे, “जेम अरणीना काष्टमा अग्नि, दूधमां घी, अने तलमा तेल, रहेतुं छे 18 तेम हे पुत्रो! शरिरने विषे आत्मा (समुर्छाए) रहेलो छे; साटे शरिरना नाशनी साथे तेनो पण नाश थाय छे अने ते सर्व वस्तुओ Ta अनित्य छे." [१८]. Jain Educationa interational For Personal and Prvate Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003693
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Mohanlal Damodar
PublisherMehta Mohanlal Damodar
Publication Year
Total Pages352
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size20 MB
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