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________________ समूह मरतो रहे , तथा सूर्यश्री जेम रान्नि, तेम तेनाथी कुराचरण तो नासतुंज फरे . ॥ ६३ ॥ पवेर्धाराकारा व्यसनशिखरिण्युत्सववने । वसंतः संकेतस्त्रिदिवशिवसंपत्तियुवतेः॥ नवांनोधौ पोतः सुकृतकमलानां च सरसी। जिनेंजाणामर्चा प्रथितमहिमानां च सदनम् ॥ ६ ॥ अर्थ-जिने प्रजुयोनी पूजा (साते) व्यसनोरूपी पर्वतने (नेदवामां) वजनी धारा सरखी बे, उत्सवरूपी वनने (विकवर करवामां) वसंत ऋतु सरखी बे, देवलोक अने मोदनी संपदारुप युवान स्त्रीने (बोलाववामां) संकेत सरखी बे, जवरूपी समुउने (तरवामां) नाव सरखी डे, पुण्यरूपी कमलोने जत्पन्न करवामां तलाव सरखी , तथा विस्तार पा. मेला महिमाना स्थानक समान वे ॥ ६४ ॥ न भूः साटोपकोपा न च करयुगलं चापचक्रादिचिन्हें । कांताकांतश्च नांको न च मुखकमलं सप्रकोपप्रसादम् ॥ यानासीना न मूर्ति च नयनयुगं कामकामानिरामं । हास्योत्फुलोन गयो सनय नवनिदो यस्य देवःस सेव्यः॥६॥ अर्थ-नययुक्त नवनेनेदनारो एवा जे देवनी चुकु. टी बाटोप सहित कोपवाली नथी,जेना बन्ने हाथो चा पचक्र श्रादिकथी चिह्नित थएला नथी, जेनो खोलो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003690
Book TitleDharm Sarvasvadhikar tatha Kasturi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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