SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १ सौनाग्य तेनी समीप यावे बे, तथा युवान पुरुषने जेम स्त्री, तेम वर्ग ने मोहनी लक्ष्मी तेने इछे बे. ६१ स श्लाघ्यः कृतिनां ततिः सुकृतिनां तं स्तौति तेनात्मनो । वंशोऽशोनिनमंति योजितकरास्तस्मै व्रजा जूनुजाम् ॥ तस्मान्नप्रथितः परोऽस्ति नुवने जागर्ति चित्तार्तिहृत् । कीर्तिस्तस्य वसंत जोग निवास्तस्मिञ् जिनं योऽर्चति ॥ ६२ ॥ अर्थ- जे माणस जिनेश्वर प्रजुने पूजे बे, ते कृतार्थ पुरुषोमां (पण) वखाणवालायक बे, तथा पुण्यवंतोनी श्रेणि तेनी स्तुति करे बे, वली तेणे पोतानुं कुल शोजाव्युं वे, तेम तेनी पासे राजाना समूहो हाथ जोगीने रहे बे, वली तेना समान या पृथ्वीमां कोइ पण बीजो माणस प्रख्यात यएलो नथी, तेम चित्तनी पीमाने हरनारी एवी तेनी कीर्ति जागृत थाय बे, तथा तेनामां जोगोना समूहो ( श्रवीने) वसे बे. ॥ ६२॥ तस्माद्दूरमुपैति दुःखमखिलं सिंहादिवेज जो । विघ्नोपश्च विजेति सर्पनिकरः कंसारियानादिव ॥ विवात्पंक जिनीपतेरिव निशा नश्यत्यनर्हा गतिः । पूज्यंते जिनमूर्तयः प्रतिदिनं यानि सस्फुर्तयः ॥ ६३ ॥ अर्थ - जे मनुष्यना घरमां स्फुरायमान एवी जिननी मूर्तियो हमेशां पूजाय बे, ते माणस पासेथी, सिंहथी जेम हाथी योनो समूह, तेम सघलुं दुःख दूर जाय बे, तथा गरुमथी जेम सर्पोनो समूह, तेम तेनाथी विघ्नोनो For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International
SR No.003690
Book TitleDharm Sarvasvadhikar tatha Kasturi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy