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________________ उ सेवाने तजे बे, पुत्र नम्रताने तजे बे, राजा नीतिने तजे बे, मुनि व्रतने तजे बे, तपस्वी तपने तजे बे, तथा एवो कुलीन माणस पण लकाने तजे बे ॥४८॥ लोनांजोजालिशीतद्युतिर हिमरुचिः पुण्यपाथोजपुंजे । शुध्यानैकसौधः प्रगुणगुणमणिश्रेणिमाणिक्य खानिः ॥ श्रेयोवरस्यालवालः कलिमल कमलाराम संहारहस्ती । तृष्णाकृष्णा हिमंत्रो विशतु हदिसतामेष संतोषपोषः ।। २० ।। अर्थ-लोजरूपी (सूर्य विकासी) कमलोनी श्रेणिनो ( नाश करवामां ) चंद्र सरखो, पुण्यरूपी कमलना समूह ने ( विकस्वर करवामां ) सूर्य सरखो, शुद्ध ध्यानना एक मेहेल सरखो, उत्तम गुणोरूपी माणिनी ने (उत्पन्न करवामां ) मणिक्यनी खाए सरखो, कल्याणरूपी वेलडीने (प्रफुल्लित करवामां ) क्यारा सरखो, क्वेश ने मंलीनतारूपी कमलना बगीचानो नाश करवामां हाथी सरखो, तथा तृष्णारूपी कृष्णसर्पने ( वश करवामां ) मंत्र सरखो, एवो आ संतोषनो पोष ( पुष्टि ) सनोना हृदमां दाखल था ? ॥ ५० ॥ हवे पितृप्रक्रम कहे बे. तेनावादि यशः प्रसिद्धिपटहः प्राकारि यात्रोत्सवस्तीर्थानां च सताममोदि हृदयं प्राणोदि पापप्रथां ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003690
Book TitleDharm Sarvasvadhikar tatha Kasturi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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