SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५३ अर्थ-पुष्प जेम सुंगधिथी, नात जेम स्वादिष्टपणाथी,गोरस जेम स्निग्धपणाथी,(चिकासथी) कोयल जेम मधुर कंथी, अश्वनी श्रेणी जेम वेगथी,तथा औषधिरस जेम कुष्ट रोगना नाशथी प्रशंसाने पामे बे, तेम आ जगतमां माणस पण पुण्य प्रनावना उ. दयथी मनुष्योमा प्रशंसा पामे .॥४॥ तोयैरेव पयोमुचां नवति यन्नीरंध्रनीरं सरः। पादैरेव ननोमणेनवति यलोकः सदालोकवान् ॥ तैलैरेव नवेदनंगुरतरज्योतिर्मणिः सद्मनः। पुण्यैरेव नवेदलंगविनवज्राजिष्णुरात्मात्र तत् ॥ ५॥ अर्थ-जेम वरसादना पाणीउथीज तलाव संपूर्ण पाणीवालु थाय , तथा सूर्यना किरणोथीज जेम श्रा जगत् हमेशां प्रकाशित थाय बे, अने तेलथीज जेम दीपक घरप्रते अखंम कांतिथी देदीप्यमान थाय , तेम था जगतमा आत्मा पण पुण्योथीज अन्नंग वैनवथी शोजनिक थाय बे. ॥५॥ न बहुधर्मविनिर्मितिकर्मठे। मनुजजन्मनि यैः सुकृतं कृतम् ॥ गृहमुपेयुषि तैरधनैः स्थितं । त्रिदशशाखिनि वांछितदायिनि ॥६॥ अर्थ-बहु धर्म करवामाटे योग्य, एवो (आ) मनुष्य जन्म पामीने पण जेए सुकृत कार्य नथी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003690
Book TitleDharm Sarvasvadhikar tatha Kasturi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy