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॥ जय गौतम स्वामीनी स्तुति ॥
॥ गुरे गएापति गाडी गौतम ध्यान घ्याण, सवि सुकृत सुजाडु विश्वमां पूज्य था पानगळत वन्नीं दुर्भने पारन्नीं, नवनिधिरिध्यि पाठीं शुष्य समडीत ठाडीं॥शा सवि निनवर डेरा साधु भांहीवडेरा, दुञ वन अधिदेश घडी सयाशुं लसेरा ॥हल्यां दुरित अंधेरांचंही तेस वेरा, गए।घर गुए। घेरानाम छेल्हु मेरा । शासविसंशयापेन चारित्र छापे, तव त्रिपही जापेशीस सोलाण्य व्यापे ॥ गएाधर पहथा पेद्दाहशांणी सभापे, लवदुजने संतापे घसने ईष्ट जापे॥आउरे ि नवर सेवा ने हाहि हेवा, समडित शुएामेवा आपतानित्य सेवापत्न वन्स निधितरेवा नौसभी तीर्थ सेवा, ज्ञानविभस लड़ेवा सील सी चरेवाचार्धति॥उन
॥ अथ अग्नित्लूतिनी स्तुति ॥
॥ जग्निभूति सुहाये नेह जीन्ने उहावे, गए घर पर पावे जंधुने पक्ष जावे ॥ मन संशय नवे वीरना शिष्य थावे ॥ सुरनरगुएाणावे पुष्पवृष्टिवघावे॥शा जाडीचा थुर्ध सवि न्निवर डेरांकने डेहेवी॥उ ॥ जय वायुत्सूतिनी स्तुति ॥
॥ वायुभूतिवसि लाई तेड़ चीन्ने उड़ाई, नेकों त्रिपही पाळीत लंला पन्ना ग्निपर जनुसाई विश्वमां डीर्त्ति गार्थ, ज्ञानविमलल सार्थ मेहने नामें पाशा तिच्या
॥ जथ व्यक्त गए।घरळनी स्तुति ॥
॥ चोथो गए।घर व्यक्त धर्म धर्म सुसम्त, सुर नर न्सलत सेवता हिवसनत पनि पह अनुरक्त भूढता वित्र मुक्त, मृत अर्भ विभुत ज्ञान सीसा प्रसङत ||१|| आर्धति॥शा
॥ जथ सोहमगएाघरनी स्तुति ॥
॥ गए|धर अभिराम सोहम स्वामी नाम, नित दुर्लयाम विश्वमां वृद्धि भांग । दुपसह गली ब्लभ तिहां लगे पर हाभ, जहुसे
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