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________________ ( ४१ ) सिष्यांत न्गीश ।आशक्ति भेडासए तिविहार, छह अहम भास जमल डीहा शापडिङमएगां होयवार, घेत्याहिङ विधि शुरैगम धाराभेङ पहा राधन लवपार, पीएयं विविध प्राशाभानंगन्ग्क्ष हरे मनोहार, हेवी सि घ्यार्धशासन रजवास ॥संघ विधन अपहार, जेभाविन्ग्य न्ग्सीपर प्या शाशुल लविश्ञए। घरमी आाधार, वीरविन्ग्य न्याशाना छति॥उ ॥ श्नथ रोहिएगी तपनी स्तुति ॥ ॥ नक्षत्र रोहिणी ने हिन खावे. अोरत पोषघ उरीशुललावे, धजीविहार भनसावे । वासुपूज्यनी लडित डीलें, गरायुंपा तसनाभन पीजें, वरष सत्तावीस जीतेंगा थोडी सडतें वरस ते सात, लवलव अथ वा विष्यात, तप उरी कुशे कुर्भधान । निन शक्ति बीन्भां नाचे, वासुपू न्यनुं जिंज लरावे, सास मणिभय हावे ॥शाग्नेम अतीत ग्जनेवर्तमान, अनागत व्होरिन जहुभान, जीनें तस गुए। गान । तपारउनी लक्तिनाहरिने, साधर्भिङ वलीसंघनी उरीजें, घरम डुरीलव तरीजें॥ रोग सोग रोहिणी तपेंन्नने, संउट रखे तस नश जहुथा, तस सुरनरजुए गानेानीराशंसपणे तप स्नेह, शंध र हितपणे उरो तेह, निधिनव होजेनेभहाशणिपधान स्थान दिन उल्याएा, सिध्ययक्रशत्रु यन्नएा, पंथमी तपभन जाए। ।। पडिमा तप रोहिणी सुजडार, उनडा - वली रत्नावली सार, भुक्तावली मनोहार ॥ जाम्भवीदृशने वर्धमान, छत्याहिछतपभांहे प्रधान, रोहिणी तप जहुमान गोणिपरें लांजेन्नि बरवाएगी, देशना भीडी अभीग्न समाग्री, सूत्रे तेहु गुंथाएगी। आय डायक्षगी यक्षडुभार, वासुपूज्य शासन सुजडार, विघ्न भिटावएा हार रोहिएगीतपरतान्नने, नेहु लव परलव सुज सहे तेह, अनुक्रमें लवनी छेड़खायारी पंडित डीपणारी, सत्यवयन लांजे सुजडारी, उ पूरविन्य व्रतधारी ॥ जिभाविनय शिष्य निनगुरेराय, तस शिष्य मुग्गुईठीत्तमथाय, पद्मविन्य गुए। गाथाना ति॥उणा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003689
Book TitleJain Kavyaprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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