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लापंडित भानविन्य भिनंपे, समति गुए। पित्त घरमेलामा
॥ अथ हीवासीनी स्तुति ॥
॥ लूति अनुपम गुए। लस्था, ने गौतम गोत्रे असं स्यापि यशत छात्रशुं परवस्या, वीस्थरए। सही लवन्स तया ॥शायी मह हस होयग्निने स्तवे, हक्षिए। पछिभीत्तर पूरवें ॥ संलव जाहि ष्टापह गिरिखें वसी, ने गौतम वहे ससी ससी। शात्रिपाहि पाभीने ने एम्री, ड्राशांणी सम्स शुए लरी ॥हीये हीज ते सड़े डेबल सिरी, ते गौतमने रहुं ग्जनुसरी । आन्क्ष मातंग सिध्यार्धा, स्ररिशासननीय लाविशश्रीज्ञानविभस हीपासिडा, उशे नित्य नित्यमंगल भाषिझा
॥ अथ वीशस्थान तपनी स्तुति ॥
॥ पूछे गौतम वीरनिएांध, समवसरए। जेठा सुजऽंघ पूनित जभर सुरिहा, प्रेम निहाये पहन्निधाडिए। विधतप तालव हा, राजे दुरितहु हंानव लांजे मलुल अत निंघ, सुएागौतभवसुलूति निंधानिर्भस तपश्जरविद्या, पीशस्थान तपरत भहिंहा भता रङ समुहार्छ यहा, तेमध्ये सवी तप । । ॥ प्रथम पहें अरिहंत नमी में, जीने सिध्ध पवयएा पहत्रीनेगा साधारन थेर हवीने, पीपाध्यायने साधु ग्रहीनें गनाए। हंसएण पह विनय वहीलें, अशी मारभेयारित्रलीने
जंलवय घारीएां गशीनें, डिरिखाएां तबस्सरीनें ॥ गोयमनिलाएं सहीनें, चारित्र नाएा सुरज तिथ्यसडीनेंगाभीने लव तपङरत सुशीनें, खेसवि न्नितपसीनें गाशा जाहिनमो पहसघसे उवीस, जार पन्नर जारवली छत्रीसाहस पए। बीस सणवीस, पांयने सडसह तेरगी सासत्तरनव डिरिग्ना पए। चीश, जार जडावीस पौषीशासीत्तर - गवन पीस्तालीश, पांच लोगस्स डाीस्सग रहीशानोठारवाली ची श, जेड जेड पहें जीपवासन वीशाभास जरें मेड जोसी उरीश, जेभ
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