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________________ ( उस ) ॥ अथ पंखतीर्थनी स्तुति ॥ ॥ श्रीशत्रुन्ग्यभुज्यतीर्थतिस श्रीनालिशलंगनं, वहे रैवन शैल भौषिभुकुटं श्रीनेमिनाथं यथा । तारंगे जन्तिं निग्नं लृणुपुरे श्रीसुत्र तं स्थलने, श्रीपार्श्व प्रएराभाभि सत्यनगरे श्रीवर्धमानं त्रियापशाव अनुत्तर उत्प तल्प लुवने ग्रैवेयङ व्यंतरा, ज्योतिष्याभरभंहराश्विस नस्तीर्थ रानाघ्रान् ॥न्जू पुष्पर घातडीषु श्थडे नहीश्वरे कुंडले, येन्या ऽन्येपि निनानमामि सततं तान् दृत्रिमाडङ्घत्रिभान् ॥शश्री मद्दीरन्नि स्यपन तो निर्णभ्यते गौतभं, गंगा वर्तन भेत्य या प्रविलिहे भिथ्या त्वयैताढ्य गाडीत्पत्ति स्थिति संहति त्रिपथगा ज्ञानांजुहा वृध्यिणा, सी मे उर्भभसं हरत्य विऽसं श्रीद्वाहशांगी नही ।। ॥ शुक्रम्यहरविग्रहा श्येधरए। ज्योंरशांत्यंजिडा, हिपालाः सम्पर्द्दि गोभुजगणिम्यक्रेश्वरी भारती ॥येऽन्येज्ञानतपः क्रियाव्रतविधि श्री तीर्थयात्राहिषु, श्रीसं घस्य तुराय तुर्विधसुरास्ते संतु लरंदराः ॥ाचा ॥ति ॥3॥ ॥ अथ नवतत्त्व स्तुति ॥ वाळवा पुएयने पावा, खाश्रव संवर तत्ताला सातभे नि राजाभे बंधु, नवभे भोक्ष पर सत्ताला जेनवे तत्ता समजेत सत्ता, लांजे श्रीलगवंतालालुम्नयर भंडए। रिसहेसर, बंहोने अरिहंताला आशाधम्मारे धम्माणासा पुञ्णस, समया पंथ जलवाळानाए। चिन्ना एा शुभाशुल योगें, चैतन सक्षएा लपा कार्धित्याहिऊ षटव्य पपड सोडालोड हिांहाला महीठी नित्यनभिये विधिशुं, सित्तरिसो न्नि यंहालाशा सूक्ष्म जाहर होने खेडेंही, जि तिथीरिंहिदुविहाल तिविड़ा पंयिहि पन्नता, अपताते विविड़ा लासंसारीजसंसारी सिध्या, निभ्ययने व्यवहारान्नापिन्नवगाहिङ नागभ सुएातां सहियें शुष्यविद्याशळा आलुवनपति व्यंतर न्योतिषचर, वैमानि सुरवृंदा का लुग् नगर भहि मंडल सघसे, संघ सम्स सुज उरले For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org
SR No.003689
Book TitleJain Kavyaprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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