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________________ ( २४१ ) Վ. झोल न पाम्या स्वामी ॥ धरणीधर नज सार्घ भल्योतज, नीथनभ्यो शिरनाभी । तडागाना भूशल धार मेहपडे तिभ, तडत तडाङेलारी भएाशुप्ति मलुननरें भागल, उतम्भर घर जारी ॥ तडागक्षमा उवन्यस्वामी तव पस्यो, प्यान जड्ग १२ आयो । शील शीसे घर अँटे हीना, महासुर महघाल्यो।तडाडेनाखासुर भसीने जति खोछवहिनो, प्रलुग्ाणस सुरतातापास प्रलुडेरागुएागातां, मान्गभांन्स प्यातातडागा जाश्री विन्यरत्न सूरितस शिष्यो, वाभानंदन गावे ॥ नीति विनयम लुपास पसायें, नवनिधिऋपि सिध्धि पावे। तडागाना ॥ अथ श्री पार्श्वनि स्तवन ॥ रायन्त अमें तो हिंदुवाएगीडे राय गरासीयारे सो। जे देशी॥ पलुल भांडस णाम भन्नर, नभो लविलावरेसी ॥ लुल श्रीगाइसि जो पास, निनेसर गायशुंरेसो॥ प्रलुळ भूल अभनानंत, उच्चानिएो माहनारेली। प्रलुळलेही जीत्तर पयडी अठ्ठावन, सयनी गांठनारे लोग लुम्छ तेहथी प्रगरी जाड, गुएानी ज्यापनारे सो प्रलुल हंसएण नाए। अनंत, अनंत सुन व्यापनारेसो ॥ प्रलुल जायिङ चारित्रशुष्य अजय जÎपी परे खो॥ प्रलुल मगुई लघु अनंत, नम्रएाचीर्यताघरे सोशामलुल सिध्ध तथा शुड़ा मेह, सह्या तुभेध्यानथी रेसो प्रलुल जसंज्य प्रदेशीळवरह्यातुभेग्यानथी रे सोलुलव राहिङगुएावीश, जप्या तेहथी ययारे सो।। प्रलुल जनाारजवेह, असंग ग्जमूरति सयारे हो |आमलुल घाती जघाती जाऊ, जप्यागुए गएाथी रे सो॥ प्रलुक सही अनंताचार, रह्या असमानथी रेसोलु ल तुमची सेवऽग्नेछु, रह्यो संसारमारेली ॥ प्रलुक तेहने तारी नहीं डेभ उहो भुन वासभारेलो॥नापलुल तरसुं खापेशाप, पीपाधान निष्यथीरे सोमलुल पए।उद्देषुतुमने ते प्रेम, निमित्त विशुध्यथीरेषीमलुल - मरए। विएान होवे अन, उहे प्रेम डेवसी रेसो । मलुल पुष्टासंजन ध्यान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary org
SR No.003689
Book TitleJain Kavyaprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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