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________________ ( २४८ ) नयन ग्जनंत प्रलुताहरांरे, अविगत जेस जनताराने नाज्ञानी अंध छानी नहींरे, 'जलिमानी हिभवंताराने नाशाला पन्नएयुं हुतुरं जही भरेहेवी भात ॥ रानेगा हेन्ने समडेत वासनारे, शो रातें जेडचा तराने गाना दुर्बल लेट सुसल सहीरे, लभत लभत संसारााराने मोहन उहे उवि रूपनोरे, न्नितुं प्राएायाधाशासनाचा ति ॥अथ श्रीशंजेश्वर पार्श्वग्निस्तवन । ॥तुं त्रिभुवनभांहीयो घरभन्नितुं त्रिभुवनभां हीवो॥ग्ने देशी शंजेश्वर पास निग्नचंधे, लविन्न शंजेश्वर पासन्निधे ॥सूरत मंडनदुरित विहुंडन, ग्खेहसाहेज सिर निहोपालविनाशानश्वसेन लगगन हिएायर, वाभाडुजें उन हो । लविणानीस उभलहसनवन उरडाया, सेवत पंछन प्रिंधे।ालविगाशा प्रलुभुज हीडें तिरियगति छेट्टी, पट पायो घरशिंहो॥ालविगान्नि पडिमा न्निवरसभ लावत, पावत परभानंहो।लविनाआन शुध्य पून विट्ठल्पने छांडे, प्रणय्योस मरस उंघालविणाशुध्यस्वरूपी सहेलनंही, घ्यावोजसंगम घे लविणाचा संगत जठार छेंतासै माघव, सीत घ्शभी ग्निवंद्योपलवि पंडित श्रीवीरचंद्र पाथी, भलुम्भंह दुःज छंयोलविणाया। ।। अथ श्री पार्श्वग्निस्तवन । छेडोनांलाओ देशी॥घ्यान घरी प्रलु पहेले दिवसें, लुगतें अबीरसगडीघो॥भुतिवधू भछरासी नारी, परएावा उंडीही घोशा ताडे तोडी छे दुःजभासा हांरेवनन्नर्ध रह्या नन्गीशान्जाडेलेडीके रंगभास॥जे मांडणी ॥ जेणें नवसरें उमहासुरनायो, पूर्वचैरन गाव्यो।। ड्ड उपट छल कृत्रिभन्नेडी, निन सेना सर्ध श्राव्यो।तडाडेगा। ीित्तर हिशिथी जीब्नही हीसे, घोरघटा घन असी ॥ नागें चाय चायन तिलीभ, भेघें मेघछटयवासी तडागाआ जहुडीपाय उश्या भेघभाली, - Jaiducationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.old
SR No.003689
Book TitleJain Kavyaprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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