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________________ ( 240 ) घरे, लावावसी रेसो घामलुल श्री गाडसीखो पास, नपुंहिनरातडीरे सोमलुल तलयें दूर विषय पर बातडीरे सो॥ प्रलुल श्रीवीर चंदनी शिष्य, मसुङगुएा गार्धयेंरे सो॥मलुक हवा तुझ्शी हेजी, सासुज पार्धयेंरे लो। ऐति श्री भांडलपुर मंडए। श्रीगाडलीया पार्श्वनाथस्त ।। जय श्री अष्टमीनुं स्तवन ॥ ।। तुने गोडुस जोसावे अन गोविंद्यगोरीरे ॥ ने देशी श्रीराम गृही शुलडाम, जधिङ हिवाळे रे । वियरंतांचीरनिएछ, जतीशय छाटेरे ॥ योगीश ने पांत्रीश, वाएगी शुए। सावेरेशा पाडीघारया वधामणीब्नय, श्रेणी नावे रेशमातिहां योशठ सुरपति जावीने, त्रिगडूं जनावेरे ॥ तेमां जेसीने जीपदेश, प्रलुन सुखावेरेशा रनर ने तिर्यय, नित निग्लाधारे ॥तिहांसमलने लव तीर, पामे सुजजा सारेशाशानिहां घेरलूति गएाधार, श्रीगुई चीरनेरे ॥ पूछे अष्टमीनो महीमाय, उड़ी प्रलुग्भमनेरे ॥ तव लाजे वीर निएछ, सुशोसहुप्राएगी शाखाम्म हिन न्निनां उल्याएा, पैशे पित्त जाएगी रे ||आ ॥ दास जी ॥ वासालनी वाटडी जमें लेतांरेश ने देशी ॥ श्रीऋषलनुं न्मम्स्याएारे, वसी चारित्र सयुं लते वानरे॥भीन्न संलव निखाए भविन्म अष्टमी तिथि सेवोरे ॥ जेछे शिवबधूनारीनो मेवोपालवि ॥श्वष्टनाशाश्रीश्जन्ति सुभति न्निनन्भ्यारे, अलिनंहन शिरपट पा भ्यारे, निन सातमां शिवपराभ्यापालविनाशावीशभांन्निसुव्रतस्वाभीरे, तेहनो जन्म भोक्ष गुएाधामीरे, मेडवीशमा शिव विसराभी एलविनाआपारसन्निभोक्ष महंतारे, त्याहिङ न्निगुएावंतारे, ड स्याएगा मोक्ष महंता । लविनानाश्रीवीरनिएांनी वाएगीरे, निसुशी सभन्यालविप्राणीरे, नाग्म हिन अति गुएरा जाएगी पालविनाचा नाउर्मते दूर पसायरे, जेथी जडसिध्धि सड जुध्धिथायरे, तेङार Jan Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibra org
SR No.003689
Book TitleJain Kavyaprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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