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________________ ( २१७ ) छपाश्री सुभति विग्य गुरैनाभथी, दुःजनासेछे । म्हे शभविन्यनि नध्यान, नवनिधि पासें छआशा गर्छति॥ ॥ जय श्री कुंथुनाथ ग्निस्तवन । ॥शी रशीयानाजीतनी छे।॥ रसीया हुंथुनिनेसर डेसर, लीनी हे हडी रेलो॥भारा नाथल रेसोरसीया मनचंछित वर पूरण, सुरतश्वेल डीरेलो महाराणा रसीया जंग्नरहित निरंग्न, नाम हुर्धो घरोरेसो महारागारसीया लुगतेंडरी भन लगतें, प्रलु पून्न उशेरेसो ॥शाम हाराणारसीया श्रीनंहननानंदन, चंदनथी सिरे रेली ॥महाराणारसी याताप निवारण तारएा, तरए। तरी परेरे लो॥महाराणारसीया भन मोहन न्ग्णसोहन, डोह नहीडिशोरे सोग महारागारसिया डाउसियु गमांहे, अवर नडो शोरेसी ॥ महाराणाशारसीया गुएासंलारीन्न ढीं, जसिहारी नाथनें रेसो ॥महारागारसीया डोए। प्रभाहे छांडे, शिवपुर साथनें रेसो महाराणा रसीया अायतो मेएा डारएा, नाजे सुरमाए रेलो॥महारागारसीयाडोए। याजे विषइखने, मेवा जवगए। रेलो || महाराणा रसीया सुरनृपतिसुत हावी, यावो यिहुं हिशेरे सोम हारागारसीया वरस सहस पंयाएं, निन पुहुवी वसेरेलो महाश पारसीया त्रीशधनुष भएाडीपर, डींथपणे प्रत्तुरे सो ॥ महारागार सीयात्रए। लुवननोनाथ डे, थर्ध जेठो विल्लुरेसो ॥ नामहारानारसी याजन्संछन गत संछन, उंधनवान छेरे लोग महाराणारसीयाऋ हि पूरे दु:जधूरे, नेहुने ध्यान छेरे सो।। महारागारसीयाजुघश्री सु भति विनय उचि, सेवा चीनचे रेली। महाराणा रसीया रामउड़े निन शासन, नवि भूडुं हुवे रेलो॥या महाराणा ॥छता ॥ अथ श्री सरनाथ ग्निस्तवन ॥ ॥ सीयन्नेरे वाडीभानी चेल, सीं पन्ने उारो डेवडोरे ॥ ने देशी ॥ ॥ णायन्नेरे घरी बीएलास, श्जर निम्नवर उग्गहीसरे ॥मानन्नेरे Ja Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003689
Book TitleJain Kavyaprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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