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________________ ( २१५ ) शिव सुज हाय हेवरे साय रे तुनसरिजोन्गभांडजेनहींरे सो आ परम निरंग्न निर्च्छितलयलगवंतरे॥पावनरे परभातम श्रवणे साल स्योरे सो॥पामी हुवे में तुङ शासन परतीत न्ने। प्यानें रेनेडतानेंमलुग्भावी भयो रेसोनाथपणे पंचाश धनुषनुं मानरे॥पाल्युरेवली आयुष साज जत्रीशनुं रेती ॥ श्री गुरे सुमति चिन्ग्य उचिराय पसायेंरे गश्नहो निशरे हिल ध्यानवसे नगहीशनुं रेसो॥च॥ र्धति ॥ जय श्री धर्मन्नि स्तवन ॥ जार्धरे गरजडी ॥ देशी ।। धर्म निनेसर सेवी में रेगलानुन रेशर नंघाजार्धरे न्निवडी ॥ न्नि घ्यानें दुःख विसरे शाहुंपामीपर भानंधा जाणाशा रत्ननडित सिंहासने रे । जेसे श्री लगवाना जाना भुहजागल नाथै सुरीरे ॥ उरे गुएागान ॥जाणाशालु वरसे ति हां देशना रेनेभजपाठीभेाजानातापटले तननोपशेरे गावाचे जा भगोनेाजागाजा भएावायां गयो घुरेरे ॥ चान्त्रि डोडा डोशाजा माता थे नाथे डिन्नरी रे सहींडे मोडा भोजराजाना नानायुचरष दृश साजनुंरेश धनु पएायासिस भानाजाणाराभविन्य न्निनाभथीरेश सहीयें नवे निधान जाणाया र्धतिया ॥ जय श्री शांतिग्निस्तवना सुंदरशांतिन्घ्निी, छजिछाले छे । पलुगंगान्तगंलीर, डी र्त्तिमाने छे गगनपुर नयर शोड़ाभ, घणुं हीपे छे। विश्वसेन नरिंहनो नंह, म्हपीपे छ।शाम्नथिश भातायें गैर घरयो, मन रंजे छ। भृग संछन उंधन चान, लावा लंबे छ।शापलुसाज वरस थोथे लागें, प्रत बीपुंछणप्रलुपाम्या डेवल ज्ञान, डारन सीधुंछे आ आधनुष पालीशनुंध शनुं, तनु सोहे छे। मलु देशना ध्वनि वासंत, लवि पडिजीहेछ।चाल उत्तवत्सल मलुता लगी, न्नतारेछे। जूडतां लवन समांहि, पार जीतारे an Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003689
Book TitleJain Kavyaprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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