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________________ (२१५) अथ श्री विभसनाथलनुं स्तवन॥ ॥स जारीजां जारीजांशुंडरो, सलोन्नडरतांन्नन । ओरे जारीयां खल ।। ओ देशी ॥ न्निविभलवघ्नरसीयामगन्नएो उनऊ उमसनो रायरेशाविभ सन्हिलान्निंग्जधर जमीरस लूमिनी, प्रतिजिंजित जिंजसुहा यरेाशा विभस निएलान्निजनुपम रूपनीरेजभांनविग्नावेसु ननाद्यैहरे ॥ विभजनान्निभुजवीडोनीडो जन्यो । भानुं जीज्योतीन्वस हरे शाशाविभसगान्नि घडिमा नेभखोपती ॥जति हीपे हंतनी खोसरे विभसनाने नरैए। अघर छजीथी भल्या भानुं भुक्ताईस सभतोसरे आविभसनान्नि अम्लग्नपी रूप। एासम्स सपीन्नएारेशवि भतणान्ग्नि अगणित शुएना घेरथी ॥ मन भांडु जांघ्युतांशानावि भसगाग्नि शिव सुजद्ययङसांलती । हुं हरस्यो हैडां भांहेरे ॥ विभसना निर्घउ तारी तुन्भुं री ॥ नेभयोरी पाहे रेशायाविभषणा प्रलु जेवडी विभाशयाशुं डरो ॥ नहीं जोर जन्मने तुझ रे।। विभषणान्येनापो तो सहामुंब्लूरजो॥तो बंछित सशे भुरे ॥९॥ विभषण सुत कृतवर्मा श्याभातएगो ॥ शाह साज घनुसमतनु नायरे ॥ चिभसणाश्री सुमति विन्ग्य ऽविशयनोरा श्येभ रामविनय गुए। गाय रे ।। विभसणागा ॥अथ श्री अनंत निम्न स्तवन ॥ ।। सांजर मती जावी छेलर पूरने॥ जे देशी ॥ ॥सुन्सानंदृनन्ग्गहानंदन नाथने । नेहेरे नवरंगें नित नितले रीयेंरे लो। लेय्याथी शुंथाजे भोरी सहीनोन्ने। लवलवनांपातिङ अंजलणां भेटीयें रेलो॥शा सुंदर साडी पेहेरी परएगा पीर रेशा जावोने योवटडे न्निगुए। गार्धयेंरेसोमा निनगुएागाग्ने शुंथायभोरी जहेनी रेशा परलव रे सुर पहची सुंदर पानीयेंरे सो शासकीयर टोली लोखी परीगल लावरेश गावेरेगुएावंती हैयडे गहु गहीरे सो॥न्यन्ग नायड Jan Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003689
Book TitleJain Kavyaprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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