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________________ ( २१८ ) खेहु महंत, भद्दीयस भांडे वासेस रेशाशा ध्यायन्ते रे दृढरी चित्त, भन चंछित इस पूरसेरे ॥चारन्ने रे नवरनी सेव, खेड़िया धूरसेरे शशा सीयन्नेरे सुमतीनीचेस, निग्नगुएा ध्यान नीरे घरे ॥ संपनेरे सभ ड्रेस, डेवल इस रणियाभरे ॥ आपुन्यथी रे हेवी नंह, नयऐनि राज्यो नेहथी रेसीपनोरे जति आएंगंध, दुःज भणगांथयाने थी रेशानाशोलतीरे त्रीशधनुषनी डाय, राय सुदर्शन वंशनी रेशाजापी जुरे निलनो सार, सहस यीराशी वरसनुंरेशान्निरान्नेरे उ‍ परणाम, डान्सरे सवी नापं रे ।। लावयीरे लक्ति प्रभाषा, हरिश नज पाये घरे सेवन्ने रे श्जरपट जरविंह ने शिव सुजनीअ मनारे ॥ राजन्ने रे मलुहृत्य भोठार, रामवधेन्ग्ग नामनारे॥ प ॥ अथ श्री मल्लीनाथ निनस्तवना ॥ अंधारीरे जोरडी ॥ जे देशी ।। मिथिता नयरी रेजवतरया । याने कुंल नरेशर नंघासंछन शोहे रे उसशतएं॥नेनीलवरएा सुजऊंघाशाभल्सी निनेसर भनवशी ॥ने जोगएशीशमो अरिहंता उपट घर्मना रेडारएाथी । प्रलुङभरी रूप घरंत ॥ शामनासहुस पंथा वनश्वरससुगो॥नेनायुतएं परिभाए। ॥भात मलावतीरेीरघश्यो।पएरावीश धनुषनुं मानाभिना ॥ सहस पंचावन रे साघवी जो ने भुनियालीश हुन्नशासभेत शिजरेंरे भुगतें गया, नेत्रएालुवन खाघाशाभनानाश्ऽलयराती रेखापथडी ॥नेनेोजांघी अवि हडप्रीता रामविन्यनारे साहेजनी ॥छे अविषस जेहन रीता मनाच ॥ जय श्री मुनिसुव्रत ग्निस्तवन । हरनी हमयी रे ॥ देशी।। आवोरे जावोरे सजी हेहेरेन खें, प्रलु हरिशन उरी निरमण घर्धने ।। गावो गावोरे हरजजपार, निनगुएागरजीरे ॥ तुभे पेहेरो सोण सागारान्निगुएा गरजोरे Jaiducationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003689
Book TitleJain Kavyaprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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