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________________ ( ८२ ) ॥ अथ वरडाएालनी छंह ॥ ॥ थौपेया छंघावंघे नरनारी, समस्तिघारी, नगडीपारी निए घासोइंडर शहर, नग अन्नयंडर. सेवे सुरनर है। पारण परमेश्वर, लु चनहिनेश्वर, जसवेसर सुजद्वंघावर आएगापासं, पुरे नाशं, पूनि सही सुजवृंधाशाने आएगी। संपत्ति ततिमापे, घरि डापे, लयें संड उन्नयधिरजेय जेटी, सजमीपेटी, चढती संपत्तिथाया हाथी शुंडाता. अतिभतवासा, भूसे घरे खाएणंधा चराएगाणाशाहे पंताचान्छ, शो लाताल, राळ राने गेहु । सोहे स्थपंति, यलेअसती, पाने पूरा तेहा पायञ्ज्ञतिशूरा, लत्तिपूरा, ससनूरा लड़े वृंधावर आणाणाआनवयौव नजाला, परसाला, पामेनवसा लोगान्निलप पंता, पाप जपंता सहियेंशुल संन्भेणापामे नसती, सन्ग्नपंती, सेवेपदृश्नरविंद्यावर सगाणानामंदिर अतिसुंदर, न्नस पुरंदर, सम सोहे सुरसालामशिभाएाऽनडिया, जंजर जडिया, तोरा आउञभासान्सडीरति सारी, न्ग विस्तारी, पामे पश्माएांद्याचराएगाणाभावराणानामें, संपत्तिपाभे, ठाम ठाम सुजप्रसान्मये दुःजञासा, मंगलभाषा, पामेश ढतेनूशामल सेवाडारी, सड़े नरनारी, नवसां सुजनां वृंधावरडाएशाव झाडर डाइए। शाहिए।, दूरें नासे, पासें नावे शेणा। अरि उरी हरितर र, न्स न्सोहर, लाने सजसा शोणाभिणिघरने ईशिघर, नन्सलयन्न ये, थाय सर्वजानंघाचरडाएगाना शान्स डीर्त्ति वाघे, वंछितसाधे, नाराधे न्निनेाते सजल महोध्य, उभसाविभसा, विससी सहे शि वगेहा सुजसाहि अनंता, लने लगवंता, विघनं आनंघावर डागाव लालशाछप्पय छंघान्यन्यन्ग्गानंध, उंह सुजसंपत्ति हाता ॥ न्य परमात्मा सेर, नूर सेव ननवाता॥निनीत्तम पट्टपद्म,सद्मसं पत्तिरेला गापविन्ग्य पहतास, जासनव निधिरिधिखाणास लभनोरथ पूरखा, सुरतचिंतामणिपरं पविग्य वंघ्न उरे- नित्य नित्यं वरडाएोसरं ॥१॥ ॥रार्धति॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003689
Book TitleJain Kavyaprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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