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________________ ( ૧ ' स्रीिट घरे, भुज हेजत होसत होय घरें ॥शाघर घोटङ ब्लेटङ उंथनना, सजभी सहियें सज मेटिम्नां नहिं जोट डिसीतुन जोट जरी, युवियोतु त्रोट छंही ॥श्शा असिना वरसें सुम्नढार तकें, तपभास तशी हशमी सुहिनें ॥शुल भूरत जीन जुशालपरों, उवित्तभ छंद जड लएो ||१|| छति ॥ ना ॥ जय शिजाभएानो छंह ॥ ॥ त्रोटङवृत्त ।। चरायङभाय सलाभङरी, उहुं सार शिजाभए जेडुजरी ॥ नरनारी सहु हुयडे घरियें, निभ नापट संट पीयरिया परलात सभे शुई देव नभी, निभहारिक होहुग दूरें गमो ॥लगवंत सघ यरएगां लन्थेिं, दुसरीति ज्यूज्जुनां तन्येिं ॥शासडिये नहिं भायनें जापथडी, वडिये नहि श्रेयथी जांघिन्डी।विशवास नडीनें नारित एगो, गुरेरान सभीपथी प्यान लगो ॥ ॥ घ्रजार जतीऽननांलजियें, घरलीतर साक्षी नहिं सजियें ।। रजियें नहिं याड पडोस सह तरियें नहिं नीर सन्नेर उहाना विवसाय सहू विधिसेंडरियें, हग हाय रमी घननालरियें ॥ परदेशहु गांडिस नां इरियें, नरपतिथडी डरतारहियेंगाघान्नुगरांच्यसनी परिना रमियें, ऋषिसाघननाथ डुंना मियें । उरियें नहिं खास भणन्नी तएगी, वलि हीन्येिं सीजस मित्त ली।शुरैग्नासन डीपरि ना घसियें, दुर्बनसें संगतिना वसियें ॥चसि घीन्ग्नीनियें झूड डिसी, घरिवार नडीन्येिंवात सी॥जावयां भुज जोसहतें पलियें, सन्ननथी सनेह घरी भलिये। परनारिनी संगति दूर तन्मे, परभारथ डारन नित्यला सुजार शिजाभएानेम उड़े, उ चिठीत्तमते न्यभास सहे। णुई या सहूजा ही हु घरी, भि त्रोटनामड़ छह जरो॥जातिशि जाभएाछंह समाप्त प Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003689
Book TitleJain Kavyaprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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