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________________ श्रीहरिजप्रसूरिकृतान्यष्टकानि । महात्मा तरिके मानेला बे, अने तेथी पोताना पक्षमा अन्यदर्शनीनी प्रीति अवामाटे तेनुं वचन अत्रे मुकेतुं . वली पण तेज कहे . धर्मार्थं यस्य वित्तेहा, तस्यानीहा गरीयसी ॥ प्रदालनाकि पंकस्य, दूरादस्पर्शनं वरम् ॥१॥ अर्थ-धर्मने माटे जेनी धननी चेष्टा के तेनी(धर्ममाटे धननी) नहीं चेष्टाज श्रेष्ट बे केम के, कादवने धोवा करतां, तेने स्पर्श नहीं करवो, तेज वधारे श्रेष्ट ने. ___टीकानो लावार्थ-धर्मने माटे जे कोश् पुरुषनी खेती, वेपार आदिकथी अव्य उपार्जन करवानी जे चेष्टा के ते पुरुषनी ते धमैने माटे तेवी अचेष्टाज (प्रव्य उपार्जन न करवू, तेज) वधारे श्रेष्ट ; अर्थात् धनने माटे व्यापार आदिक करवामां अवश्य पाप थाय ने, अने ते पापने उपार्जन करेलां एवां अव्यना दानथी अवश्य शोध, पडे बे; माटे तेथी धनने माटे खेती श्रादिकनी चेष्टा नहीं करवी तेज श्रेष्ट बे; केम के तेम करवाश्री धनना दानथी शुद्ध कर, पडे एवं पाप लागतुंज नथी; वली ते अचेष्टामां परिग्रह अने आरंजनुं वर्जवापणुं जे; तेथी ते धर्मरूप . हवे ा बाबतमाटे दृष्टांत कहे ने के, अशुचिरूप एवा कादवने धोवा करतां, तेने प्रकर्षे करीने स्पर्श नहीं करवो, तेज वधारे श्रेष्ट ने अर्थात् कादवमां हाथ पग आदिक अवयवोने नांखीन पण पग ते धोवा पडे बे, तेना करतां ते कादवने स्पर्श न करवो, ते श्रेष्ट बे; तेवीज रीते अव्यअग्निकारिका करीने संपदा उपार्जने करवी, अने तेथी उत्पन्न श्रता पापने पाडं दान आपीने शोधकुं, तेना करतां अहींज ते व्यअग्निकारिका नहीं करवी ते श्रेष्ट जे. श्रानो मतलब ए जाणवो के, मुमुहुए व्यअग्निकारिका करवी नहीं; केम के, तेथी उत्पन्न थता कर्मरूपी कादवने कीचडमां नाखेला पग आदिकनी पेठे फरीने धोवो पडे ने. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003686
Book TitleHaribhadrasuri krutanyashtakani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1900
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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