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________________ ५४. श्रीहरिलजसूरिकृतान्यष्टकानि । ते पुष्पोश्री पूजा करवी. हवे ते पुष्पो केवां? ते कहे जे के, नहीं करमाएलां, तथा पवित्र बाल आदिकमां रहेलां; केम के जो ते पुष्पो एवां न होय, तो स्नानादिकनी पवित्रता पण मननी निवृत्तिने उत्पन्न करी शकती नथी. वली ते पुष्पो थोडां एटले दरेक (झानावरणादिक) आठ अपायोने दूर करवामाटे श्राप, अथवा घणा एवां मालती बिचकील आदिकथी उत्पन्न थतां पुष्पोएं करीने पूजा करवी. अहीं मूलभ्लोकमां जे “वा" शब्द मूकेलो , ते थोडां अथवा घणां पुष्पोवाली पूजानुं सरखं फल देखाडवामाटे . __ अहीं कोई वादी शंका करे के, उत्तम जातिनां जे पुष्पो कह्यां, ते सुवर्ण आदिकनां पुष्पोना निषेधमाटे जे; केम के उत्तम जातिनां पुष्पो तो एकजवार चडावी शकाय , तथा पळी तेमने निर्मात्य करीने वारंवारं ते चडावातां नथी; अने सोना आदिकनां पुष्पो तो वारंवार चडावाय ; अने तेथी निर्माट्यारोपणनो दोष आवे . हवे ते वादीने तेनो उत्तर आपे ने के, ते अयुक्त जे. केम के सिद्धांतमां कडं ने के, “कंचणमोतियरयगाइदामएहिंचविविहेहिं” (विविध प्रकारनी कंचन, मोती, तथा रत्न आदिकनी मालाउँथी जिनपूजन करवू. ) वली ज्यारे ते पुष्प आदिक पागं न उताराय, त्यारे तो “ निर्माल्यपणानो" दोष न आवे, पण ते मालती आदिकनां पुष्पो तो थोडा काल पठी सुगंधिरहित श्राय ने, माटे ते अवश्य उतारवां जोएं, अने सुवर्ण आदिकना पुष्पो तो तेम निर्गध श्रतां नथी, माटे ते अवश्य उतारवा लायक थतां नथी, अने तेथी तेउने फरीने चडाववामां पण ते दोष आवी शकतो नथी. वली केटलाको एम कहे जे के, वीतरागने अलंकार पहेराववा अयुक्त के केम के तेथी वीतरागरूप आकारनी अप्राप्ति थाय ने ते कहे पण युक्त नथी, केम के, जो एम मानीएं, तो पुष्प आरोपण करवामां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003686
Book TitleHaribhadrasuri krutanyashtakani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1900
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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