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________________ ११ प्तिीयाष्टक. जे "सचेलस्नानें करीने देवार्चन करवु" एम माने , तेना मतYखंडनकयु: केमके पाणीथीनींजाएखां वस्त्रोवालानां स्नानपणानी अप्रतीति ने. वली श्राही "देश" शब्दथी जे एम माने के, “बुद्धिवानोए माटी करीने लींगनी एकवार, गुदास्थाननी त्राणवार, एकता हाथनी दशवार, अने बन्ने हाथोनी सातवार शुद्धि करवी; वली तेवा प्रकारनी शुद्धि ग्रहस्थोए बेवडी, ब्रह्मचारीए त्रेवडी, तथा वानप्रस्थाश्रममा रहेला यतिउए चोवडी करवी;" एवं माननाराऊनी हांसी थक्ष केम के, एवी रीते शुद्धता करवामां यत्न करनारा पण लिंग अने गुदानां अंदरनां नागने शुद्ध करवाने तो असमर्थज . अने वली तेथी फक्त चांबडीनीज शुद्धि थाय बे, पण तेवीज रीते ते कान, नाक श्रादिकनी शुद्धि तो करता नथी; वली ते कर्ण नाशिकादिको पण अशुद्ध नथी थतां, तेम नथी. वली ते शुद्धि पण प्रायें करीने क्षणमात्रज रहे , पण लांबो वखत रहेती नश्री; "प्रायें करीने" कहेवानी मतलब ए के, रोगी माणसने तो तेवी रीतनी शुद्धि कणमात्र पण रहेती नथी. तेवी शुद्धि दणमात्रज केम रहे बे ? तेने माटे कहे जे के, एक मेखने दूर करवाथी बीजा मेलनो उपरोध कंई शकतो नथी; केम के शरीरनो तो मलाश्रयनो स्वनावज ने, माटे बीजा मेखने रोकी शकातो नथी. माटे एवीरीतनुं जलादिकना आश्रयवालुं स्नान, ते “व्यस्नान" कहेवाय; अने तेथी स्नानना जाणनाराए तेने “अन्य स्वान" कहेडं जे. वली बीजा आचार्यो “प्रायोऽन्यानुपरोधेन" ए वाक्यनो अर्थ एवी रीते करे के, प्रायें करीने ते स्नानमा जलना जंतु शिवाय बीजा प्राणीउने उपरोध थतो नथी, तेथी तेने "अव्यस्लान" कहीये. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003686
Book TitleHaribhadrasuri krutanyashtakani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1900
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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