SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 215
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वात्रिंशतीतमाष्टक. २०३ टीकानो जावार्थ - ( उपरना श्लोकना अर्थने मलतोज बे.) हवे तेज अर्थने दृष्टांतथी समर्थन करता थका कहे बे. दृष्टश्चाभ्युदयेजानोः प्रकृत्या कीष्टकर्मणाम् ॥ प्रकाशोद्युलूकानां तद्वदत्रापि जाव्यताम् ॥७॥ अर्थ- सूर्यनो उदय होते बते, प्रकृतिथीज पुष्ट कर्मों वाला एवा धुवडोने प्रकाश नहीं थतो, जलाएलो बे; तेनी पेठे अहीं पण जाणी लेवु. टीकानो जावार्थ - ( उपरना श्लोकना अर्थने मलतोज बे. ) हवे प्रजुनी देशनानुंज स्वरूप कहे बे. इयं च निगमाया, तथानंदाय देहिनाम् ॥ तदात्वेवर्तमानेपि, जव्यानां शुद्धचेतसाम् ॥८॥ अर्थ- प्रभुनी ते देशना निश्चयें करीने ते कालने विषे, वणिग्वृद्धदासीना उदाहरणें करीने, प्राणीउना आनंद माटे थइ बे; वर्तमान कालमा पण शुद्ध चित्तवाला एवा जन्योना श्रानंद माटे थाय बे. टीकानो जावार्थ -- ( उपरना श्लोकनार्थने मलतोज बे.) एवी ते एकत्री शमा अष्टकनुं विवरण संपूर्ण श्रयुं. द्वात्रिंशत्तमाष्टकं प्रारभ्यते. हवे सकल कर्मोना यथी जे थाय बे ते देखाडवा माटे कहे बे. कृत्स्नकर्म दयान्मोक्षो, जन्ममृत्य्वादिवर्जितः ॥ सर्वबाधा विनिर्मुक्त, एकांतसुखसंगतः ॥१॥ अर्थ- सघला ज्ञानावरणादिक आठे कर्मोना यथी, जन्म अने मृत्युदिकधी रहित, तथा सर्व श्रापदाविनानो, अने एकांत सुखना संगमवालो मोह थाय बे. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003686
Book TitleHaribhadrasuri krutanyashtakani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1900
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy