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________________ १५६ श्रीहरिलजसूरिकृतान्यष्टकानि । सामायिकं च मोदांगं, परं सर्वज्ञलाषितम् ॥ वासीचंदनकल्पाना, मुक्तमेतन्महात्मनाम् ॥१॥ अर्थ- वांसला प्रते चंदनतुट्य, एवा महात्माउने माटे, सर्वप्रजुए कहेलुं एवँ सामायिक उत्कृष्टुं मोदनुं अंग कहेलुं . टीकानो. नावार्थ-( उपरना श्लोकना अर्थने मलतोज बे.) हवे ते सामायिकनुं स्वरूपथी वर्णन करता थका कहे . निरवद्यमिदं ज्ञेय, मेकांतेनैव तत्वतः ॥ कुशलाशयरूपत्वात्सर्वयोगविशुक्रितः॥२॥ अर्थ- ते सामायिक, उत्तम आशय रूप होवाथी, तथा सघला मन, वचन, अने कायाना योगनी शुधिथी, परमार्थे करीने एकांतथीज निरवद्य जाणवू. टीकानो नावार्थ- ( श्लोकना अर्थने मलतोज जे.) हवे बौधे अंगीकार करेला सामायिकना दूषणमाटे कहे जे.. यत्पुनः कुशलं चित्तं, लोकदृष्टया व्यवस्थितम् ॥ तत्तथौदार्ययोगेऽपि, चिंत्यमानं न तादृशम् ॥३॥ अर्थ- पण जे लोकदृष्टिथी कुशल चित्त रहेळु , ते, तेवा प्रकारनी उदारतानो योग होते ते पण, चितवन करातुं थकुं, शुद्ध सामायिक सरखं कहेवाय नहीं. हवे ते बुधे कहपेलुं कुशल चित्त देखाडता थका कहे . मय्येवनिपतत्वेत, जगहुश्चरितं यथा ॥ मत्सुचरितयोगाच्च, मुक्तिः स्यात्सर्वदेहिनाम्॥४॥ अर्थ- बुद्ध कहे ने के, जगतनुं श्रा सुश्चरित्र मारामांज श्रावीने पडो ? के जेथी करीने मारा उत्तम चरित्रना योगथी सघसा प्राणी ने मोद थाय. .. टीकानो लावार्थ- (उपरना श्लोकना अर्थने मलतोज बे.) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003686
Book TitleHaribhadrasuri krutanyashtakani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1900
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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