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________________ ए श्री हरिजप्रसूरिकृतान्यष्टकानि । बाधा न आवे. शास्त्रा ने एटले ते बनावेला आगमना ने बाधा करवाये करीने, पापबंध थाय बे, केम के, शास्त्रना अर्थने जे बाधा पहोंचाडवी, ते महा अनर्थनुं कारण बे. कयुं बे के, यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य, वर्तते कामचारतः ॥ न स सिद्धिमवाप्नोति, न सुखं न परां गतिम् ॥ १ ॥ अर्थ - जे माणस शास्त्रनी विधिने तजीने, पोतानी वा प्रमाणे वर्ते, ते मास मोद, सुख के उत्कृष्टी गति पामतो नथी. वली शास्त्र तो परनी प्रीतिना नाशनो प्रयत्न अंगीकार करवामांज तत्पर रहेलुं वे. माटे एवा हेतुश्री मुमुने प्रगट जोजन करवामां तत्वना जानाराए पापबंध केतां अशुभ कर्मनी उत्पत्ति कहेली बे. वादक के, जले शास्त्रार्थने बाधा थाय; तो तेने कहे बेके, तेम नहीं; तेने माटे हवे हे बे. शास्त्रार्थश्च प्रयत्नेन, यथाशक्ति मुमुगुणा ॥ अन्यव्यापारशून्येन, कर्तव्यः सर्वदैव हि ॥ ७ ॥ अर्थ - अन्य व्यापारने नहीं करता एवा मुमुकुए, पोतानी शक्तिमुजब प्रयले करी हमेशां शास्त्रार्थ करवो. टीकानो जावार्थ-दृष्ट अने इष्टथी आगमना अर्थनुं जे कदेवं, तेने “आगमार्थ" कहीयें; एवो आगमार्थज करवो; ते केवी रीते करवो ? तो के, प्रयत्नथी कहेतां आदरश्री करवो; केम अनादर करवाथी खेकुतोने जेम तेम विवक्षित फलनी सिविथती नथी. वादी शंका करे के, संघयण आदिकथी हीन एवा मुमुने समग्र शास्त्रार्थ करवो मुइकेल बे; माटे आ उपदेश तो न बनी शके, एवी क्रियावालो बे. तेने माटे तेने कहे बे के, "यथाशक्ति " केतां पोताना शरीरनी शक्तिप्रमाणे शास्त्रार्थ करवो. hi बेके, “वीर्यने नहीं गोपवतो थको चारित्रने विराधतो नथी; Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003686
Book TitleHaribhadrasuri krutanyashtakani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1900
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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